संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ - आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे

श्रीकृष्ण-रूक्मिणी की वरमाला पर जमकर फूलों की हुई बरसात

संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ - आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे

दुर्ग। मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है। मिलन बैण्ड परिवार के सौजन्य से विजय नगर कॉलोनी के अभिनंदन पुरुषोत्तम ग्रीन में चल रही आठ दिवसीय भागवत कथा के समापन पर व्यास पीठ से आचार्य गोपाल भैया ने यह बातें कहीं।
   श्रीमद भागवत कथा के सातवें दिन श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह का आयोजन हुआ। जिसे धूमधाम से मनाया गया.भागवत कथा के सातवें दिन व्यास पीठ पर विराजमान कथावाचक आचार्य डॉ. विक्रांत दुबे महाराज ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मणी विवाह के प्रसंग के साथ साथ सुदामा मिलन का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया. कथा के दौरान आचार्य ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ. जीव और ब्रह्म के मिलने को ही महारास कहते है। कथा में भजन में 'तो सुन मुरली की तान दौड़ आई सांवरियाÓ पर श्रोताओं ने भाव विभोर होकर नृत्य किया। रास का तात्पर्य परमानंद की प्राप्ति है जिसमें दु:ख, शोक आदि से सदैव के लिए निवृत्ति मिलती है। महाराज ने कहा कि आस्था और विश्वास के साथ भगवत प्राप्ति आवश्यक है। भगवत प्राप्ति के लिए निश्चय और परिश्रम भी जरूरी है। आचार्य जी कृष्ण-रुक्मणि विवाह प्रसंग पर बोल रहे थे।उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया। भगवान श्रीकृष्ण रूक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया. कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया. भागवत कथा के सातवे दिन कथा स्थल पर रूक्मणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया.

संस्कार युक्त जीवन जीने से मिलती है मुक्ति
कथावाचक ने कहा कि जो व्यक्ति संस्कार युक्त जीवन जीता है वह जीवन में कभी कष्ट नहीं पा सकता। व्यक्ति के दैनिक दिनचर्या के संबंध में उन्होंने कहा कि ब्रह्म मुहूर्त में उठना दैनिक कार्यों से निर्वत होकर यज्ञ करना, तर्पण करना, प्रतिदिन गाय को रोटी देने के बाद स्वयं भोजन करने वाले व्यक्ति पर ईश्वर सदैव प्रसन्न रहता है. इस दौरान कृष्ण-रुक्मिणी विवाह की झांकी सजायी गयी।    आचार्य ने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आचार्य गोपाल भैया ने कहा कि 'स्व दामा यस्य स: सुदामाÓ अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी, उन्होने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए, चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा मे सुदामा चरित्र का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे। उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की।
    आज की कथा में धर्मप्रेमी विश्वनाथ पाणिग्रही जी द्वारा सभी उपस्थित जनोँ को छोटे छोटे पौधे वितरण किया गया। कथा में श्रीमती तरुण पांडेय, दिनेश शर्मा, अनिता अग्रवाल, सरोज जोशी, तारा देवी पुरोहित, मनीष सेन, सरिता शर्मा, चंचल शर्मा, मोना शर्मा, प्रभा शर्मा, प्रतिभा पुरोहित, रेखा रुंगटा, सविता बावनकर, सुनीता गुप्ता, प्रभा शर्मा, कुलेश्वरी जायसवाल, सरिता वर्मा, माया वर्मा, ललिता सिन्हा, रुकमणी सिन्हा, लक्ष्मी यादव, सँध्या वर्मा, क्षया वर्मा, महेंद्र साहू, विनय मिश्रा, महेंद्र भूतड़ा, सूजल शर्मा, वाशु शर्मा सहित बड़ी संख्या में महिलाएं एवं पुरूष उपस्थित थे।