विशुद्ध रूप से आत्मशुद्धि का पर्व है संवत्सरी, लोगों ने एक दूसरे से की क्षमा याचना

विशुद्ध रूप से आत्मशुद्धि का पर्व है संवत्सरी, लोगों ने एक दूसरे से की क्षमा याचना

रायपुर। राष्ट्रसंत श्री ललित प्रभ जी ने कहा कि संवत्सरी विशुद्ध रूप से आत्मशुद्धि का पर्व है। यह वर्षभर में हो चुके पापों की आलोचना करने का पर्व है। संवत्सरी हृदय शुद्धि और कषायमुक्ति का पर्व है। जैसे कपड़ा पहनने का बाद गंदा हो जाता है वैसे ही इंसान से जाने-अनजाने अनेक गलतियाँ हो जाती हैं। अपने से हो चुकी गलतियों को याद कर पुन: माफी मांगने की प्रेरणा है संवत्सरी। उन्होंने कहा कि क्षमा से बढ़कर कोई तप और त्याग नहीं होता। क्षमा से ही धर्म की शुुरुआत होती है। संवत्सरी पर्व तभी सार्थक होता है जब इंसान अपने से हो चुके गलत कृत्यों के लिए माफी मांगता है और दूसरों से होने वाली गलतियों को माफ कर देता है। उन्होंने कहा कि जैसे गंगा में डूबकी लगाने से तन का मैल धुल जाता है वैसे ही क्षमा की गंगा में नहाने से पाप, ताप और संताप तीनों धुल जाते हैं। संत प्रवर आउटडोर स्टेडियम में आयोजित संवत्सरी की आलोयणा विषय पर आमजनमानस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि क्षमा धर्म को अपनाने वाला सच्चा आराधक होता है। जो व्यक्ति संवत्सरी पर्व के दिन भी भीतर में वैर-विरोध की गांठ पाले रखता है वह इंसान कहलाने के काबिल नहीं रहता। बड़ों के झुकने का पर्व है-संतश्री ने कहा कि संवत्सरी छोटों का नहीं, बड़ो के झुकने का पर्व है। 364 दिन भले ही बड़े छोटों से प्रणाम करवाएँ, पर संवत्सरी का 1 दिन मानवजाति को संदेश देता है कि सास बहू को, पिता बेटे को, अधिकारी कर्मचारी को और बड़े छोटों को प्रणाम कर हो चुके अनुचित व्यवहार की क्षमायाचना कर ले। जो गलती करता है वह इंसान है, जो गलती पर गलती किए जाता है वह इंसान कहलाने के काबिल नहीं रहता और जो गलती होने पर क्षमा मांग लेता है वह भगवान तुल्य बन जाता है। स्वयं की आलोचना करें-संतश्री ने कहा कि जैसे व्यापारी साल बीतने पर खातों का लेखा-जोखा करता है ठीक वैसे ही संवत्सरी साल भर का लेखा-जोखा करने का पर्व है। हमसे जो भी सालभर में पाप हुए हैं उन्हें स्वीकार कर स्वयं की आलोचना करने का पर्व है संवत्सरी। उन्होंने कहा कि के वल तप-त्याग से आत्मा निर्मल नहीं होती है जो गलती को स्वीकार प्रायश्चित कर लेता है उसकी आत्मा अवश्य निर्मल हो जाती है। कल्पसूत्र का हुआ वांचन-इस अवसर पर मुनि शांतिप्रिय सागर ने सभी श्रद्धालुओं को मूल कल्पसूत्र का वांचन कर सुनाया। 10,000 लोगों ने किया स्टेडियम में सामूहिक सांवत्सरीक प्रतिक्रमण-संवत्सरी पर्व पर स्टेडियम में हजारों लोगों ने संवत्सरी का बड़ा प्रतिक्रमण कर एक दूसरे के पांवों में झुककर परस्पर सामूहिक क्षमायाचना की।