सामुदायिक बाड़ियों में आलू की खेती आरंभ, जमराव में आज हुई बुवाई
अलग-अलग बाड़ियों में बोई जा रही अलग तरह की फसल
दुर्ग। पांच सौ बरस पहले पोलैंड से आलू भारत पहुंचा और अब बिना आलू की सब्जी की कल्पना कठिन है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में आलू की खेती नहीं हो रही थी। इसका कारण यह नहीं था कि क्लाइमेट का साथ नहीं था अथवा इसमें तकनीकी विशेषज्ञता जरूरी होती है। कारण यही था कि किसानों को ऐसा प्रोत्साहन नहीं था कि वो नवीन चीजें करें अथवा ऐसा कोई माध्यम नहीं था जिससे वो नई चीज होते देखें।
खेती में यह जड़ता मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार के आने के बाद टूट गई है। सामुदायिक बाड़ी जमराव में आज आलू बोये जा रहे हैं। यह पहली बार हुआ कि सामुदायिक बाड़ी में आलू की फसल बोई गई हो। इस संबंध में जानकारी देते हुए उप संचालक उद्यानिकी श्रीमती पूजा साहू ने बताया कि कलेक्टर श्री पुष्पेंद्र कुमार मीणा के निर्देशानुसार और जिला पंचायत सीईओ श्री अश्विनी देवांगन के मार्गदर्शन में सभी बाड़ियों के लिए प्लान बनाया गया है। इनमें जमीन की प्रकृति के अनुसार अलग-अलग तरह की सब्जी चुनी गई है। जमराव, केसरा और करेला के लिए हमने आलू चुना है और इसकी खेती आरंभ कर दी गई है। इसका उत्पादन 30 क्विंटल पर हेक्टेयर होता है। इसका उत्पादन पांच से छह गुना होता है इसलिए लाभ की अच्छी गुंजाइश होती है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा घरेलू उपयोग के लिए भी यह काम आयेगा। घर की बाड़ी में दूसरी सब्जी हो जाती है लेकिन आलू अभी भी खरीदना होता है तो इसका खर्च बच जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए यह अच्छा सीजन है। तापमान भी अनुकूल है। इस संबंध में सारी तकनीकी जानकारी दे दी गई है। आलू का उत्पादन करने के इच्छुक किसानों को भी इसके बारे में बताया गया है।
यहां काम देख रहे उद्यानिकी परिक्षेत्र अधिकारी श्री बीआर गुलेरी ने बताया कि आज ही सामुदायिक बाड़ी में इसकी खेती आरंभ की गई है। इसके नतीजे आने से अन्य किसान भी उत्साहित होंगे। इस संबंध में चर्चा करने पर नव ज्योदि समूह की अध्यक्ष और इस कार्य में लगी दीपा साहू ने बताया कि नया काम करना अच्छा लगता है। गौठान में नया नया काम करते हैं तो बढ़िया लगता है। इस बार आलू बो रहे हैं। आलू तो बिकना ही है सब लोग खाते हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए तकनीक भी बताई गई है।