खाकी कैसे बनी पुलिस की पहचान, जिसका नाम सुनते ही उड़ जाते हैं अपराधियों के होश, पढ़िये इतिहास की 170 साल पुरानी अनसुनी स्टोरी

खाकी कैसे बनी पुलिस की पहचान, जिसका नाम सुनते ही उड़ जाते हैं अपराधियों के होश, पढ़िये इतिहास की 170 साल पुरानी अनसुनी स्टोरी


कर्नाटक के मेंगलुरू में सन् 1851 में हुआ था इसका जन्म
भारत में काजू के खोल का इस्तेमाल पर पहली बार बनाया गया था खाकी का डाई
नई दिल्ली (एजेंसी)। खाकी अंग्रेजों के जमाने से ही पुलिस की पहचान है। बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि पुलिस के लिए खाकी का इस्तेमाल सबसे पहले भारत में ही हुआ। इसकी इतिहास 170 साल पुरानी है।
कर्नाटक के मेंगलुरू में सन् 1851 में इसका जन्म हुआ। जॉन हॉलर नाम के एक जर्मन टेक्सटाइल इंजीनियर और ईसाई मिशनरी शहर में बालमपट्टा के बाजल मिशन वीविंग इस्टेब्लिशमेंट (कपड़े बनाने की फैक्ट्री) में काम करता था। उसी ने पहली बार कपड़ों को रंगने के लिए खाकी डाई को ईजाद किया। बताया जाता है कि 1851 में हॉलर को फैक्ट्री के इंचार्ज की जिम्मेदारी दी गई। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी खाकी डाई का आविष्कार। उसके नेतृत्व में कपड़ा फैक्ट्री ने 1852 से खाकी कपड़ों को बनाना शुरू किया।
खाकी एक उर्दू का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है धूल का रंग। यह खाक शब्द से बना है। 1848 में ही खाकी शब्द आॅक्सफर्ड डिक्शनरी में जगह पा चुका था, लेकिन इसके 3 साल बाद इस नाम से पहली बार डाई बनी। हॉलर ने काजू के खोल का इस्तेमाल करते हुए इस डाई को बनाया। वैसे भी दक्षिण कर्नाटक में बड़ी तादाद में काजू का उत्पादन होता है। खाकी रंग की डाई जल्द ही तेजी से लोकप्रिय होती गई। हर तरह के कपड़े बनते और पहनने के लिए तैयार किए जाते थे। लेकिन हॉलर की खाकी मिलिटरी के बीच अपने टिकाऊपन की वजह से काफी चर्चित हो गई।'

भारत में बना और दूसरे देशों के लिए सैनिकों के लिए अनिवार्य कर दिया गया खाकी
उसी दौरान हॉलर के बनाए खाकी कपड़ों को तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी के केनरा जिले में पुलिस यूनिफॉर्म के रूप में अपनाई गई। कासरागोड, साउथ केनरा, उडुपी और नॉर्थ केनरा में खाकी पुलिस की वर्दी बन गई। खाकी की चर्चाएं मद्रास प्रेसीडेंसी के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड रॉबर्ट्स तक भी पहुंच गईं। उनके मन में जिज्ञासा जगी कि आखिर इतना टिकाऊ कपड़ा कहां और कैसे बन रहा है। लॉर्ड रॉबर्ट्स ने बलमट्टा की उस फैक्ट्री का दौरा किया जहां खाकी कपड़े बन रहे थे। वह इतना संतुष्ट हुआ कि उसने ब्रिटिश सरकार से सिफारिश की कि आर्मी के लिए खाकी को वर्दी तौर पर चुना जाए। ब्रिटिश सरकार ने उसकी सिफारिशें मान ली और इस तरह खाकी मद्रास प्रेसीडेंसी के तहत आने वाले सैनिकों की वर्दी का रंग बन गई। कुछ समय बाद ब्रिटेन ने भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के अपने उपनिवेशों में सैनिकों के लिए खाकी को अनिवार्य कर दिया। बाद में दूसरी सेनाओं औ भारत सरकार के विभागों ने भी अपने जूनियर-लेवल स्टाफ के यूनिफॉर्म के लिए खाकी को अपना लिया। भारतीय डाक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट वर्करों की यूनिफॉर्म भी खाकी ही है।