भिलाई निगम पर अवैध वसूली के गंभीर आरोप, आप ने तीन मामलों से खोला राज

भिलाई। आम आदमी पार्टी ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर बताया कि आकाश गंगा परिसर में निगम निर्मित किराए पर दी गई दुकानों के दुकानदारों से निगम द्वारा 42 वर्ष पुरानी बकाया किराया अंतर राशि विधि विरुद्ध (अवैध वसूली) करने के संबंध में शिकायत की गई है। साडा से नगर पालिक निगम बनने से लेकर वर्ष 2017 तक भिलाई की जनता से निगम ने करोड़ों रुपए नामांतरण के नाम पर लिया जिसमें मेहरबान सिंग़ की जनहित याचिका पर बिलासपुर हाई कोर्ट ने विधि विरूद्ध करार दिया। उन्होंने कहा कि भिलाई निगम ने अपनी आय बढ़ाने का यह जो तरीका अपनाया है क्या वो न्याय संगत है? इसको अवैध वसूली का नाम क्यों न दिया जाए?
विधि विरूद्ध वसूली उदाहरण क्रमांक 1
कृपया बताए कि किस कानून के तहत आकाश गंगा परिसर में साडा / निगम द्वारा निर्मित दुकानों का वर्ष 1982 से अब तक किराया राशि का डिफरेंस अमाउंट लाखों रुपए का डिमांड नोट निगम ने दुकान किराएदारों को भेजा। 1982 में उक्त दुकान की किराया राशि 660 रूपए था। यह कि आकाश गंगा परिसर में निगम द्वारा प्रथम मंजिल तक निर्मित दुकानें 100 से अधिक दुकानें है जिनमें से तत्कालीन साडा/निगम ने कुछ दुकानें लीज पर दी तथा कुछ दुकानें किराए पर दी। 1982-83 में साडा ने जिन दुकानों को किराए पर दिया उनके किराएनामे में यह शर्त थी कि हर तीसरे वर्ष में किराए की राशि 10 प्रतिशत बढे़गी। वर्तमान में निगम ने वर्ष 1982-83 से वर्ष 2025 का किराए के अंतर की राशि आपको जमा करनी है जो कि लाखों में है। उसके साथ वर्ष 2017 से लागू जीएसटी की राशि भी देनी है। जबकि वर्ष 2017 से जीएसटी का भी कोई नोटिस निगम ने अपने किराएदारों को नहीं भेजा। अचानक लगभग 60 से 65 हजार का जीएसटी का राशि भी देना है। क्या भिलाई निगम के पास जीएसटी नंबर है? अगर है तो डिमांड नोट में जीएसटी नंबर क्यों नहीं लिखा है? अन्यथा किराएदारों को जीएसटी रिफंड कैसे मिलेगा। सवाल ये भी है कि जीएसटी वर्ष 2017 से शूरू हुआ क्या निगम 7 साल बाद जीएसटी राशि की डिमांड कानून कर सकता है ? 40 वर्ष पुरानी किराए की अंतर राशि की मांग कानून कर सकता है ? क्या यह सब न्यायसंगत है? कुछ लोगों ने वर्ष 2017 तक पैसे जमा किए। उस समय भी निगम ने नहीं बताया कि आपको अंतर राशि देनी है। तात्कालीन साडा अध्यक्ष को दुकानदारों ने निवेदन किया था कि दुकाने चल नहीं रही है तो उन्होनें दुकानें नहीं चलने के कारण किराया राशि को आधा किया था।
विधि विरूद्ध वसूली उदाहरण नंबर 2
दक्षिण गंगोत्री में एक प्लाट भजन सिंग आत्मज एस.डी. दलजीत के नाम पर था उसने उक्त प्लाट को वर्ष 2017 में निगम से एनओसी कमांक-206 दिनांक 6.10. 2017 प्राप्त कर मिर्जा एजाज परवेज को विक्रय किया वर्ष 2020 में भू अभिलेखों नाम चढाने के लिए जब केता निगम के पास गया तो उससे निगम ने 72852.00 रुपए की क्षतिपूर्ति राशि लिया उसके बाद भू अभिलेखों में उसका नाम चढाया सवाल ये है कि बिना क्षति पुर्ति राशि लिए आपने एनओसी कैसे जारी कर दी? उसके बाद केता को कहते है कि भू अभिलेखों में नाम चढाना है तो क्षतिपूर्ति राशि देनी होगी। क्या यह मांग न्याय संगत है? जिस अधिकारी ने क्षतिपुर्ति राशि लिए बगैर एनओसी जारी कि उसके विरूद्ध आपने कोई कार्यवाही क्यों नही की?
विधि विरूद्ध वसूली का उदाहरण नबर-3
नेहरू नगर निवासी जय किशन आहुजा उसने अपने प्लाट के लीज नवनीकरण लिए आवेदन दिया निगम ने उनको 2001-2002 वर्ष 2023-24 तक का भवन क्षति पुर्ति राशि का डिमांड नोट 331157.00 रूपए का डिमांड नोट दिया वर्ष 2001 से 2023 तक आप क्या कर रहे थे? जबकि इनका क्षतिपूर्ति राशि बनता ही नही था।अगर यह राशि लेना न्याय संगत है तो फिर आपके अधिकारी कर्मचारी इतने वर्षों तक फाईलें दबाकर क्यों बैठे रहे? क्यों न ऐसा माना जाए कि अधिकारी कोई लेकर फाईल दबाकर बैठे रहे? इनके विरूद्ध आपने कोई कार्यवाही क्यों नही की?