ममता सरकार को HC से बड़ा झटका, सभी OBC सर्टिफिकेट रद्द
मुस्लिम समाज के लोगों को वोट बैंक के रूप में किया इस्तेमाल
जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि मुसलमानों के कुछ वर्गों को "राजनीतिक उद्देश्यों के लिए" ओबीसी आरक्षण दिया गया। यह पूरे समुदाय और लोकतंत्र का अपमान है। पीठ ने यह भी कहा है कि मुस्लिमों के जिन वर्गों को आरक्षण दिया गया था, उन्हें राज्य की सत्तारूढ़ व्यवस्था ने एक वस्तु और "वोट बैंक" के रूप में इस्तेमाल किया।
कोलकाता। कोलकाता हाईकोर्ट से पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने 2010 के बाद जारी सभी OBC अन्य पिछड़े वर्ग सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया है. जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की बेंच ने ये फैसला उस याचिका पर दिया है, जिसमें ओबीसी सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने राज्य में ओबीसी सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया है। हाई कोर्ट ने 37 वर्गों को दिए गए ओबीसी आरक्षण को भी रद्द कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने उन लोगों को इस फैसले से राहत दी है, जो इन सर्टिफिकेट के आधार पर आरक्षण का लाभ पाकर नौकरी कर रहे हैं।
आरक्षण से जुड़े अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन वर्गों का ओबीसी दर्जा हटाया गया है, उसके सदस्य यदि पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, तो उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने कहा कि 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में ओबीसी के तहत सूचीबद्ध लोगों की संख्या पांच लाख से ऊपर होने का अनुमान है। अदालत ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) कानून, 2012 के तहत ओबीसी के तौर पर आरक्षण का लाभ प्राप्त करने वाले कई वर्गों को संबंधित सूची से हटा दिया। पीठ ने निर्देश दिया कि 5 मार्च, 2010 से 11 मई, 2012 तक 42 वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने वाले राज्य के कार्यकारी आदेशों को भी रद्द कर दिया गया। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 2010 से पहले ओबीसी के 66 वर्गों को वर्गीकृत करने वाले राज्य सरकार के कार्यकारी आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया गया, क्योंकि इन्हें याचिकाओं में चुनौती नहीं दी गई थी।