एससी-एसटी एक्ट के तहत कई निर्दोषों को बनाए गए झूठे आरोप के शिकार
केरल हाईकोर्ट ने कहा, एससी-एसटी एक्ट के मामलों में जमानत देने से पहले जांच लें दुश्मनी का इतिहास
कोच्चि (एजेंसी)। केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत याचिकाओं पर विचार करने से पहले अदालतों को यह देख लेना चाहिए कि क्या आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच पहले से कोई दुश्मनी का इतिहास रहा है या नहीं? हाई कोर्ट ने कहा कि झूठी बातों को खारिज करने से पहले अदालत को संवेदनशील रुख दिखाना चाहिए।
हाई कोर्ट का यह निर्णय कई मायनों में महत्व रखता है क्योंकि एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 18 और 18ए के तहत प्रथम दृष्टया आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देना वर्जित है। जस्टिस ए बदरुद्दीन ने अपने 9 दिसंबर के आदेश में कहा कि इस अधिनियम के प्रावधान कड़े हैं और वास्तविक मामलों में इसे लागू किया जाना चाहिए।
जस्टिस बदरुद्दीन ने कहा एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम में कड़े प्रावधानों के कारण आरोपी को गिरफ्तार करने व हिरासत में लेने के खतरों के साथ-साथ उन्हें अग्रिम जमानत देने के मामलों में अदालतों का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वे निर्दोष व्यक्तियों को झूठे केस में फंसाने की संभावनाओं को खारिज करें और शिकायतकर्ताओं के गुप्त उद्देश्यों की छानबीन करें।
हाई कोर्ट ने कहा कि यह चौंकाने वाला तथ्य है कि कई निर्दोष व्यक्ति इस अधिनियम के तहत झूठे आरोप के शिकार बनाए गए हैं। उनकी जमानत याचिका पर विचार करने से पहले सच और झूठ को परखने की आवश्यकता थी। कोर्ट ने कहा यदि मामले की शुरुआती जांच और मूल्यांकन करने पर झूठे निहितार्थ की संभावना का पता चलता है, तो अदालत यह कह सकती है कि प्रथम दृष्टया अग्रिम जमानत देने के उद्देश्य से अभियोजन पक्ष के आरोपों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है और कथित अपराधों की निष्पक्ष जांच का आदेश दिया जाता है।