राग-द्वेष से सुख की प्राप्ति नहीं- डॉ. इन्दुभवानन्द महाराज
भिलाई। जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के शिष्य डॉ. इन्दुभवानन्द महाराज ने गहोई वैश्य समाज के द्वारा एमपी हाल जुगवानी में आयोजित श्रीमद् भागवत की कथा का विस्तार करते हुए बताया कि राग द्वेष जहां भी रहते हैं व्यक्ति को दुख ही देते हैं। दूसरों के गुण दोषों का चिंतन करने से ही राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है, इनका सर्वथा परित्याग करना चाहिए क्योंकि गुणों के चिंतन से राग उत्पन्न हो जाता है और दोषों के चिंतन से द्वेष, इन दोनों के चिंतन से संसार के लोग हमारे दुश्मन और दोस्त बन जाते हैं और हमारी शांति सर्वदा के लिए भंग हो जाती है यदि आप शांति प्राप्त करना चाहते हैं तो राग-द्वेष द्वेष का सर्वथा परित्याग कर देना चाहिए, इनके परित्याग से ही हमारे हृदय में विराजमान ईश्वर का हमको दर्शन हो सकता है आगे सुधी वक्ता ने कथा का विस्तार करते हुए बताया कि श्रीमद् भागवत ज्ञान भक्ति और वैराग्य का सम्मिलित रस है। श्रीमद् भागवत के श्रवण पठन करने से श्रोता और वक्ता कर्म करते हुए भी कर्तृत्व (कर्तापना)फल से मुक्त होकर नैष्कर्म्य को प्राप्त हो जाता है श्रीमद्भागवत की यही विशेषता उसे अन्य पुराणों से श्रेष्ठ सिद्ध कर देती है इसलिए वेदव्यास जी महाराज ने श्रीमद् भागवत को पुराण तिलक कहा है।