जगतधात्री पूजा में उमड़े श्रद्धालु, कालीबाड़ियों में हुआ आयोजन
 
                                









भिलाई। बंगाली समाज के लोगों ने पारंपरिक श्रद्धा और उत्साह के साथ मां जगतधात्री की पूजा मनाई। सेक्टर-6, हाउसिंग बोर्ड और हुडको कालीबाड़ी में पूजा का आयोजन किया गया, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। कालीबाड़ी में दिनभर भक्ति और उत्साह का माहौल रहा।

सप्तमी, अष्टमी और नवमी की पूजा एक ही दिन सम्पन्न हुई। पुष्पांजलि और हवन के बाद मां को भोग चढ़ाया गया और श्रद्धालुओं को खिचड़ी प्रसाद का वितरण किया गया। कई मंदिरों में 56 भोग लगाकर मां जगतधात्री को फल और मिठाई अर्पित की गई। हुडको कालीबाड़ी में निताई चांद चक्रवर्ती, गोविंद वल्लभ, हाउसिंग बोर्ड कालीबाड़ी में अरूण चक्रवर्ती और सेक्टर 6 कालीबाड़ी में मानस मिश्रा, हीरालाल भट्टाचार्य ने पूजा संपन्न कराया। यह पूजा अहंकार के नाश, आत्मसंयम और भक्ति की भावना का उत्सव है। इसलिए जगतधात्री पूजा का स्वरूप दुर्गा पूजा की तरह भव्य नहीं, बल्कि शांत, सौम्य और अनुशासित होता है।

देवी दुर्गा के पुनः अवतार के रूप में
माना जाता है कि असुर महिषासुर के वध के बाद जब देवी दुर्गा ने संसार को दानवों से मुक्त किया, तब लोग फिर से सुख-सुविधा में खो गए और उनका अहंकार बढ़ गया। इस अहंकार को शांत करने और धर्म की याद दिलाने के लिए देवी ने जगतधात्री रूप में अवतार लिया। देवी जगतधात्री को शेर या हाथी पर सवार दिखाया जाता है। हाथी यहाँ अहंकार का प्रतीक है, और देवी का उस पर सवार होना इस बात का संकेत है कि मनुष्य को अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना चाहिए। देवी का सौम्य रूप यह संदेश देता है कि शक्ति केवल युद्ध या क्रोध में नहीं, बल्कि संयम, विवेक और करुणा में भी होती है। पश्चिम बंगाल के चंद्रनगर, कृष्णनगर और कोलकाता में जगतधात्री पूजा बहुत भव्य तरीके से मनाई जाती है। चंद्रनगर की जगतधात्री पूजा अपनी लाइटिंग और सजावट के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

पौराणिक लोककथा
कहा जाता है कि किसी समय बंगाल में नदिया के राजा कृष्णचंद्र राय को मुस्लिम शासक ने किसी कारण से बंदी बना लिया। उस समय दुर्गा पूजा का पर्व आने वाला था, पर राजा कैद में होने की वजह से पूजा नहीं कर सके। राजा दुर्गा के अनन्य भक्त थे। तब एक बालिका ने सपने में राजा को दर्शन दिए और कहा कि तुम दुर्गा पूजा तो नहीं कर पाए, लेकिन मेरी पूजा जगतधात्री रूप में करो, जिससे धर्म की रक्षा और शक्ति का स्मरण बना रहे। राजा ने वैसा ही किया और उसी वर्ष से जगतधात्री पूजा की शुरुआत बताई जाती है। यह पूजा वास्तव में दुर्गा पूजा के बाद भक्ति की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए शुरू की गई हो। नदिया या चंद्रनगर के राजा कृष्णचंद्र राय के 18वीं सदी समय में इसका प्रचलन बढ़ा और वहीं से यह परंपरा व्यापक हुई।

 
                         Santosh Kumar
                                    Santosh Kumar                                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
                                        
                                     
            
             
            
             
            
            