पूतना अविद्या का स्वरूप है-डॉ. इन्दुभवानन्द महाराज
भिलाई। गहोई वैश्य समाज द्वारा एमपी हाल जुगवानी में चल रही श्रीमद् भागवत की दिव्य कथा को विस्तार देते हुए परम पूज्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के शिष्य रायपुर शंकराचार्य आश्रम की प्रभारी डॉ. इन्दुभवानन्द महाराज ने बताया कि पूतना अविद्या का स्वरूप है। अविद्या कभी भी भगवान के नेत्रों के सामने रुक नहीं सकतीहै, जिसकी सत्ता विद्यमान न हो उसे अविद्या कहते हैं, अविद्या माया का ही स्वरुप है इसे अनिर्वचनीय कहा जाता है। यह सद् और असद् से विलक्षण हैअविद्या (माया) के बिना लीला हो नहीं सकती है। अतः है भगवान ने पूतना को देखकर नेत्र बंद कर लिए। भक्तों ने भगवान के नेत्र बंद करने के अनेक भाव निकाले हैं। नेत्र बंद करके मानो भगवान ने शंकर जी का आवाहन किया और कहा कि महाराज आपको प्राण पीने का अभ्यास है, और मुझे दूध पीने का अभ्यास है अतः आप आकर के प्राणों का पान करें और मैं दुग्ध का पान करूंगा ।पूतना के पास दो ही चीज हैं एक प्राण और दूसरा दूध। मारने की नीयत से दूध पिलाने आई पूतना को भी भगवान श्री कृष्ण ने माता की गति दे दी। सुखदेव जी महाराज कहते हैं संसार में भगवान से बढ़कर कौन दयालु होगा।
आगे सुधि वक्ता ने भगवान श्री कृष्ण चंद जी की दिव्य बाल लीलाओं की मार्मिक प्रस्तुति करते हुए बताया की लीला के दर्शन, चिंतन, श्रवण करने से संसार की विस्मृति होती है उसे लीला कहते हैं लीला के द्वारा ही ब्रह्म साक्षात्कार होता है और जीव अपने निज स्वरूप को प्राप्त कर लेता। कथा के पूर्व गहोई वैश्य समाज के अध्यक्ष पवन कुमार ददरया एवं अन्य सदस्य गणों ने श्रीमद्भागवत की पोथी का पूजन किया आरती की। सांसद विजय बघेल भी भागवत सुनने पहुंचे और उन्होंने आशीर्वाद लेकर श्रीमद् भागवत सुना।