सैन्य जवान के अपहरण का दुस्साहस, ईद के त्योहार पर छुट्टी लेकर आया था घर

सैन्य जवान के अपहरण का दुस्साहस, ईद के त्योहार पर छुट्टी लेकर आया था घर

श्रीनगर। सेना के जवान जावेद अहमद वानी के अपहरण मामले में पुलिस और सुरक्षाबलों की जांच जारी है। अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मामले में कई लोगों से पूछताछ की। लद्दाख क्षेत्र में तैनात जवान को रविवार को काम पर लौटना था। वह ईद के त्योहार पर छुट्टी लेकर घर आया था। शाम के समय वह घर से अपनी गाड़ी से सामान खरीदने के लिए निकला था। इसके बाद से वह लापता है। वानी के पिता ने उन लोगों से अपील की है जिन्होंने उनके बेटे का अपहरण किया होगा कि वे उसे जिंदा छोड़ दें क्योंकि वह परिवार का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति है।

मोहम्मद अय्यूब वानी ने संवाददाताओं से कहा, "मैं अपील करता हूं कि उसे जिंदा छोड़ दिया जाए। अगर उसने किसी को परेशान किया है तो मैं उसके लिए माफी मांगता हूं। अगर वे चाहें तो मैं उसे नौकरी भी छोड़वा दूंगा।" जवान के पिता ने बताया कि उनका बेटा शनिवार शाम को मांस खरीदने के लिए बाहर गया था। उसे रविवार को अपनी पोस्टिंग वाली जगह पर वापस जाना था। पिता ने कहा, 'उसने अपने भाई से कहा कि वह उसे कल (रविवार) हवाई अड्डे पर छोड़ दे। कुछ समय बाद, हमें फोन आया कि उसकी कार लावारिस हालत में मिली है और उसके दरवाजे खुले हुए हैं।' प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि कार में खून के निशान थे लेकिन अधिकारियों ने इसकी पुष्टि या खंडन नहीं किया है।

सीमापार के इशारे पर एक बार फिर दहशत फैलाने की साजिश रची गई है। इसकी शुरुआत दक्षिण कश्मीर से की गई है। साजिश है कि अनुच्छेद 370 हटने की वर्षगांठ से पहले वर्ष 2018 के हालात पैदा किए जाएं जब खौफ से कई पुलिसकर्मियों ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। हालांकि, अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुरक्षा बलों की सख्ती का नतीजा है कि आतंकी तथा अलगाववादी समर्थक कोई भी घटना नहीं कर पा रहे थे। पिछले तीन साल से इस प्रकार की कोई घटना नहीं हो पाई थी। वर्ष 2020 से यह पहली घटना है जब किसी सैन्य जवान के अपहरण का दुस्साहस किया गया है। सीमापार के इशारे पर एक बार फिर दहशत फैलाने की साजिश रची गई है। इसकी शुरुआत दक्षिण कश्मीर से की गई है। साजिश है कि अनुच्छेद 370 हटने की वर्षगांठ से पहले वर्ष 2018 के हालात पैदा किए जाएं जब खौफ से कई पुलिसकर्मियों ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। हालांकि, अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुरक्षा बलों की सख्ती का नतीजा है कि आतंकी तथा अलगाववादी समर्थक कोई भी घटना नहीं कर पा रहे थे। पिछले तीन साल से इस प्रकार की कोई घटना नहीं हो पाई थी। वर्ष 2020 से यह पहली घटना है जब किसी सैन्य जवान के अपहरण का दुस्साहस किया गया है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुरक्षा बलों की सख्ती की वजह से जवानों के अपहरण व हत्या की घटनाओं पर ब्रेक लग गया था। अंतिम बार मई 2020 में शोपियां से एक पुलिसकर्मी का आतंकियों ने अपहरण किया था, लेकिन बाद में उसे सुरक्षित छोड़ दिया था। इसी साल अप्रैल में अनंतनाग के अरवानी इलाके में भी अपहरण की एक कोशिश हुई थी लेकिन अपहरण कर ले जा रहे दो आतंकी मुठभेड़ में मार गिराए गए थे। इसके बाद फिर से इस प्रकार की कोशिशें सिरे नहीं चढ़ पाई। पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुरक्षा बलों की संख्ती से आतंकियों को कोई मौका नहीं मिला। अब सरकार की ओर से आतंकियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर हमले के बाद से लगभग आतंकी व अलगाववादी घटनाएं हाशिये पर चली गई हैं। तीन साल बाद दोबारा दहशत फैलाने की कोशिश की गई है।