बच्चों को पढ़ा-लिखाकर केवल शिक्षित ही न बनाएं वरन् संस्कारित भी बनाएं
दुर्ग। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि जो माता-पिता बच्चों को केवल जन्म देते हैं वे सामान्य हैं, जो बच्चों को जन्म के साथ सुविधाएं-संपत्ति देते हैं, वे माता-पिता मध्यम हैं, पर जो अपने बच्चों को जन्म और सम्पत्ति के साथ अच्छे संस्कार भी देते हैं वही उत्तम माता-पिता कहलाते हैं। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि वे अपने बच्चों को इतना सुयोग्य बनाएं कि वे समाज की अग्रिम पंक्ति में बैठने लायक बन सके और बच्चे ऐसा जीवन जीए कि लोग उनके माता-पिता से पूछने लग जाए कि आपने ऐसी कौनसी पुण्यवानी कि जो आपके इतने अच्छी संतान पैदा हुई। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ा-लिखाकर केवल शिक्षित ही न बनाएं वरन् संस्कारित भी बनाएं। संतप्रवर रविवार को सकल जैन समाज द्वारा जिला कचहरी के पीछे स्थित ऋषभ नगर मैदान में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के दूसरे दिन हजारों सत्संग प्रेमी भाई बहनों को जीवन को संस्कारी बनाने के गुर विषय पर संबोधित कर रहे थे। बच्चों को कार से पहले संस्कार देने की सीख देते हुए संतश्री ने माता-पिता से कहा कि अगर आप अपने बुढ़ापे को सुखी बनाना चाहते हैं तो बच्चों को केवल कार न दें, साथ में संस्कार जरूर दें। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कार दुनिया के किसी मॉल में नहीं मिलते ये तो घर के अच्छे माहौल में मिलते हैं। हमें इतना उत्तम जीवन जीना चाहिए कि हमारा जीवन ही बच्चों के के लिए आदर्थ बन जाए।
परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ: बच्चों को संस्कारित करने का पहला सूत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ। बच्चों पर धन के साथ समय का भी निवेश करें। घर में अच्छा साहित्य रखें। घर में सम्मान की भाषा बोलें। नाम के पहले श्री व बाद में जी लगाएं, बड़ों के पांव छुएं, मेहमानों को गेट तक पहुँचाने जाएं, घर में लड़ाई-झगड़े का वातावरण न बनाएं और व्यसनों का कदापि सेवन न करें। नशे का त्याग करें - संत प्रवर ने कहा कि जहाँ एक अच्छी आदत जीवन को ऊँचाइयाँ दिया करती है वहीं एक बुरी आदत अच्छी जिंदगी को बर्बाद कर देती है। आपका एक गलत शौक पूरे परिवार को शोक में डाल सकता है। व्यक्ति भूलचूककर नशा करने की आदत जीवन में न डाले क्योंकि नशा नाश की निशानी है। नशा दांत से लेकर आंत तक, दिल से लेकर दिमाग तक नुकसान ही नुकसान करता है। अगर इन्हें जीते-जी छोड़ देंगे तो हम जीत जाएंगे नहीं तो ये एक दिन मौत बनकर हमें छोड़ देंगे।भीतर के भगवान को न चढ़ाएँ नशा-संतप्रवर ने कहा कि जिनके खान-पान का कोई पता नहीं होता उनके खानदान का भी कोई पता नहीं होता। इंसान मंदिर के भगवान को नशा नहीं चढ़ाता तो फिर भीतर के जीते-जागते भगवान को नशा क्यों चढ़ा देता है। जब मैं ग्यारह साल की उम्र में संसार को छोड़ सकता हूँ तो क्या आप इक्यावन साल की उम्र में एक बुरी आदत को भी छोड़ नहीं सकते। पाँच साल का छोकरा समझ गया कि नशा करना बुरी बात है लेकिन पचपन साल का डोकरा अभी भी समझ नहीं पाया कि नशा करना बुरी बात है। उन्होंने कहा कि एक महिला शराबी पति की पत्नी बनने की बजाय विधवा बनना ज्यादा पसंद करेगी क्योंकि शराबी के साथ रहने की बजाय विधवा रहने में ज्यादा सुख है। उन्होंने बहिनों से कहा कि अगर घर में कोई नशा कर रहा है तो एक बार वे घर में युद्ध जैसा मोर्चा खोल लें। खाना बनाना और खिलाना छोड़ दें। जब तक घर व्यसनमुक्त न हो जाए तब तक चुपचाप न बैठें।
संस्कारों के प्रति जागरूक रहिए-अभिभावकों को प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि बच्चों को कार से पहले संस्कार दें। बच्चों को आजादी दें, पर अंकुश भी रखें। उन्हें गलत संगत से बचाकर रखें। शराबी बाप भी अपने बेटे का शराबी बनाना नहीं चाहेगा, पर शराबी दोस्त अपने दोस्त को शराबी बनाकर ही छोड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे व्यसनों से घिर गए हैं तो हिम्मत करके उन्हें कहें कि वे या तो व्यसन छोड़ें या घर। बिगड़ेल बच्चों के बाप कहलाने की बजाय बिना बच्चों के रहना ज्यादा अच्छा है। साथ ही उन्हें सम्पत्ति के हक से भी वंचित रखें। अगर आप बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोक नहीं सकते तो कृपया करके बच्चों को पैदा ही न करें। अगर आप खुद व्यसन करते हैं तो सावधान! आने वाले कल में आपके बच्चे आपकी बुरी आदतों के चलते आपका नाम लेने में भी शर्म महसूस करेंगे। याद रखें, व्यक्ति की सच्ची दीक्षा उस दिन होती है जिस दिन वह बुरी आदतों का त्याग कर अपने संस्कारों को सुधार लेता है। संकल्प जगाइए, नशा हटाइए-संतश्री ने कहा कि जिस इज्जत को बनाने में सौ साल लगते हैं, नशे की एक आदत उसे पूरा मटियामेट कर देती है। शुरू में गम को भूलाने वाला नशा बाद में सबसे बड़ा गम बन जाता है। उन्होंने कहा कि गुटखा में से ट हटाइए, बोलिए फिर भी जी करे तो प्रेम से खाइए। दुनिया की सारी चीजें खींचने से लम्बी होती है, पर सिगरेट को खीचों तो...केवल वही छोटी नहीं होती वरन् जिंदगी छोटी होती है। व्यक्ति केवल एक बार इसे बनता हुआ देख ले तो उसे अपने आप नशे से नफरत हो जाएगी। व्यक्ति बुरी सोहबत से बचे, व्यसनों के परिणामों पर चिंतन करे, संकल्प शक्ति जगाए और गुटखा, सिगरेट, शराब जैसे दुव्र्यसनों को हमेशा के लिए लाइफ से गेट आउट कर दे। जब संतप्रवर ने झोली फैलाकर सत्संगप्रेमियों से नशे का त्याग करने की गुरुदक्षिणा मांगी तो अनेक युवाओं और लोगों ने आजीवन नशे के त्याग करने के संकल्प लिए और सभी भाई-बहिनों ने हाथ खड़े कर नशे से सदा दूर रहने का मानस मनाया। इस अवसर पर संतप्रवर ने हम सबका एक ही संदेश: व्यसन मुक्त हो सारा देश का नारा दिया।