प्रतिबंध के बाद भी दुर्ग जिले में धड़ल्ले से बिक रहा थाई मांगुर

प्रतिबंध के बाद भी दुर्ग जिले में धड़ल्ले से बिक रहा थाई मांगुर

दुर्ग। छत्तीसगढ़ शासन, मछलीपालन विभाग द्वारा प्रदेश में एक्सोटिक मागूर (क्लेरियस गेरीपिनस) एवं बिग हेड ( हाइपोप्थेलमिक्थीस नोबीलीस) मछलियों के मत्स्य बीज उत्पादन, मत्स्य बीज संवर्धन एवं पालन को प्रतिबंध किए जाने के बाद भी दुर्ग जिले की मछली बाजारों में धड़ल्ले से इसका विक्रय जारी है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा इस कार्य में लिप्त पाए जाने पर 1 साल की जेल और 10 हजार जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है। सूत्रों ने बताया कि थाई मांगूर मछली को अन्य राज्यों से लाकर दुर्ग जिले की अलग-अलग इलाकों में बेचने के लिए खपाया जा रहा है। इस मछली को वर्ष 1998 में सबसे पहले केरल में बैन किया गया था। उसके बाद भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था और अब वर्ष 2023 में छत्तीसगढ़ शासन ने इसे बैन कर दिया है। थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है। 
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ शासन, मछलीपालन विभाग द्वारा प्रदेश में एक्सोटिक मागूर (क्लेरियस गेरीपाइंस) एवं बिग हेड ( हाइपोप्थेलमिक्थीस नोबीलीस) मछलियों के मत्स्य बीज उत्पादन, मत्स्य बीज संवर्धन एवं पालन को प्रतिषिद्ध घोषित किया गया है। इन प्रतिषिद्ध मछलियों का कोई भी मछुआ, वैयक्तिक, समूह या समिति, केंद्र या राज्य शासन द्वारा मत्स्यों का मत्स्य बीज उत्पादन, शासन अथवा वैयक्तिक जलस्रोत में संवर्धन एवं पालन नहीं करेगा। राज्य शासन के द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार इन मछलियों का परिवहन, आयात एवं विपणन भी प्रतिबंधित किया गया है। संचालक मछली पालन के द्वारा जारी आदेश के अनुसार प्रतिबंध का उल्लंघन किए जाने की स्थिति में छत्तीसगढ़ मत्स्य क्षेत्र (संसोधन) अधिनियम 2015 के तहत एक वर्ष का कारावास एवं 10 हजार रूपए अथवा दोनों से दंडित किया जा सकेगा। राज्य शासन इन प्रतिबंधित मछलियों से संबंधित किसी भी गतिविधि में लिप्त पाए जाने पर दोष सिद्ध उपरांत संबंधित को मत्स्य विभाग द्वारा दी जाने वाली सभी प्रकार की योजनाओं से प्रतिबंधित भी किया जाएगा।

साल 2000 में ही मांगूर मछली के पालन पर लगा दिया  गथा प्रतिबंध
गौरतलब  है कि भारत सरकार की ओर से साल 2000 में ही मांगूर मछली के पालन और बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। मगर दुर्ग जिले की मछली बाजार में धड़ल्ले से मांगूर का विक्रय जारी रहा। मत्स्य विभाग के अधिकारियों द्वारा भी कभी व्यापारियों पर कार्यवाही नहीं की गई। यही वजह है कि दुर्ग जिले की मछली बाजारों में हाईब्रिड मांगूर का विक्रय धड़ल्ले से चलता रहा और व्यापारी मालामाल होते रहे। 

तालाबों के पर्यावरण को भी खतरा
मांगूर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है। इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी के साथ बढ़ती है। जहां अन्य मछलियां पानी में आक्सीजन की कमी से मर जाती हैं, लेकिन यह जीवित रहती है। मांगूर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को भी खा जाती है। इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब होता है। जानकारी का अभाव व सस्ती होने के कारण लोग हाईब्रिड मांगूर मछली को खरीद लेते हैं।

कैंसर सहित अन्य बीमारियों का खतरा
यह मछली पूरी तरह से मांसाहारी होती है और इसके मांस में 80 फीसदी तक लेड और आयरन की मात्रा होती है। इसलिए इसके आहार से शरीर में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड की मात्रा बढ़ जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। कैंसर संबंधी बीमारियों के साथ-साथ यूरोलाजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियों के लिए भी यह घातक है।