एक घर में पत्नी अलग कमरे में रह रही है, तो यह पति के साथ मानसिक क्रूरता है - हाईकोर्ट; पत्नी की अपील खारिज, पति तलाक का हकदार, पति के साथ नहीं करती थी सेक्स
दुर्ग में हुई थी शादी
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच की जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय कुमार अग्रवाल ने यह टिप्पणी की है कि एक घर में पत्नी अलग कमरे में रह रही है, तो यह पति के साथ मानसिक क्रूरता है। उन्होंने एक केस में पति को तलाक के लिए हकदार मानते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को सही माना है। वहीं पत्नी आरोपों को खारिज करते हुए वह हाईकोर्ट पहुंची थी लेकिन वह पति के तथ्यों को साबित नहीं कर सकी और हाईकोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी है।
गौरतलब हो कि अप्रैल 2021 में दुर्ग में शादी हुई थी। युवक के अनुसार शादी के बाद पत्नी अपने पति के चरित्र पर शक करती थी, इसे लेकर वो आए दिन विवाद करती थी। यहां तक पत्नी ने शादी के बाद यह कह दिया कि वह पति के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाएगी। क्योंकि, उसका किसी दूसरी महिला से संबंध है। विवाद के बाद पति और घरवालों की समझाइश के बाद पत्नी राजी हो गई। हालांकि कुछ दिनों बाद फिर से विवाद शुरू हो गया। इसके बाद परिजनों ने सामाजिक बैठक बुलाई लेकिन यहां भी कोई हल नहीं निकला और सुलह नहीं हो पाई। पति-पत्नी के विवाद और मनमुटाव के चलते दोनों एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहने लगे। विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों की कई बार बैठक बुलाई। आखिर में कहा गया कि दोनों बेमेतरा में जाकर रहें।
सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर जनवरी 2022 से दोनों साथ रहने लगे, लेकिन युवक के मुताबिक, पत्नी यहां भी अलग कमरे में सोती थी। मानसिक रूप से परेशान होकर पति ने तलाक लेने की सोची। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत फैमिली कोर्ट में मामला दायर किया। इसे मंजूर भी कर लिया गया। वहीं पत्नी ने अपने लिखित बयान में पति के लगाए आरोपों से इनकार किया है। उसने पति का मामला खारिज करने की मांग की। पत्नी ने कोर्ट को बताया कि, शादी की रात उनके शारीरिक संबंध बने, जिसे वो साबित नहीं कर पाई। शादी के बाद अक्टूबर 2021 तक वह और उसके पति ने अच्छे माहौल में शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन बिताया। दोनों साथ रहते थे।
पत्नी ने बताया कि, उसने पति को कहा था कि ममेरी बहन के साथ व्यवहार पसंद नहीं आया। हालांकि यह नहीं बता सकी कि पति का ममेरी बहन के साथ कौन सा व्यवहार पसंद नहीं आया। वहीं पति ने कहा कि भाभी के साथ भी संबंधों को लेकर पत्नी को शक था। पति ने कहा कि, पत्नी बेवजह बेबुनियाद आरोप लगाती थी, ऐसे आरोप किसी भी सभ्य व्यक्ति के लिए सहनीय नहीं हो सकता है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने पति आवेदन को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री को मंजूर करते हुए तलाक की अनुमति दे दी।
फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील पेश की। जिसमें उसने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करने की मांग की थी। साथ ही कहा कि फैमिली कोर्ट ने बिना तथ्यों को सुने तलाक का आदेश दिया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों को सुना। जिसके बाद फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया है।