पहले से विवाहित पत्नी को दांपत्य का अधिकार नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज किए पत्नी के वैवाहिक अधिकार 

विशेष विवाह अधिनियम कानून पर हाईकोर्ट का अहम फैसला

पहले से विवाहित पत्नी को दांपत्य का अधिकार नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज किए पत्नी के वैवाहिक अधिकार 

बिलासपुर। हाईकोर्ट विशेष विवाह अधिनियम कानून पर पर अहम फैसला सुनया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक तिवारी ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पत्नी पहले से विवाहित हो तो वह दांपत्य जीवन बहाल करने के लिए हकदार नहीं हो सकती। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ प्रकरण में निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए पति की अपील को स्वीकार कर दिया है। महिला ने अपने पति को गुमराह करते हुए धर्म परिवर्तन कर पहले ही शादी कर चुकी थी। इसके बाद भी निचली अदालत में केस दायर कर दूसरे पति से वैवाहिक अधिकार भी बहाल करा लिए थे।

महिला के पति किशोर कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की। इसमें बताया गया कि उनकी शादी माया देवी के साथ 5 मई 2001 को हिंदू रीति के अनुसार हुई थी। शादी के समय उसकी पत्नी इरउ द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। तब उनकी सहमति से वह फाइनल ईयर की परीक्षा में शामिल होने मायके गई थी, जहां परीक्षा 27 अप्रैल 2002 को खत्म हुई और वह 6 मई 2002 को पत्नी की विदाई हुई।

पहले से विवाहित थी पत्नी इसलिए पति ने छोड़ा
पत्नी को ससुराल लेकर आने के बाद महज 8 व 10 मई से ही किशोर कुमार के घर और ससुराल में गुमनाम चिट्ठियां आने लगी। इसमें उसकी पत्नी के विवाहित होने संबंध में जानकारी दी गई थी। लेटर के साथ सबूत आने लगे तो पति-पत्नी के बीच विवाद शुरू हो गया। किशोर ने पत्नी के पूर्व से विवाहित होने की बात कहकर उसे साथ रखने से इंकार कर दिया। किशोर को पता चल गया था कि उसकी पत्नी ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर पहले ही शादी कर चुकी है।

पत्नी धर्म परिवर्तन कर ली थी शादी
अपील में पति किशोर ने बताया कि उसे 6 मई 2002 को उसे पता चला कि उसकी पत्नी माया देवी इस्लाम धर्म अपना कर शबनम निशा बन कर सैय्यद जुबेर के साथ शादी कर ली थी। पत्नी के पहले से विवाहित होने की जानकारी मिलने के बाद पति ने उसे मायके छोड़ दिया। पत्नी और उसके पिता ने जानबूझकर कपटपूर्वक तथ्य को छिपाकर शादी की थी। ऐसे में पत्नी वैवाहिक अधिकार के तहत क्षतिपूर्ति की हकदार नहीं है।

दुर्ग के विवाह अधिकारी का सर्टिफिकेट किया पेश
पति किशोर ने अपनी अपील के साथ दुर्ग के विवाह अधिकारी की ओर से जारी सर्टिफिकेट और फोटोग्राफ्स भी हाईकोर्ट में प्रस्तुत किया, जिसमें माया देवी के शबनम निशा बनने व सैय्यद जुबेर से 26 दिसंबर 2001 को शादी करने का उल्लेख है। उन्होंने कोर्ट से कहा कि यह सर्टिफिकेट विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 13 के अनुसार एक अहम सबूत है।

फैमिली कोर्ट का आदेश खारिज
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों और तथ्यों को सुनने के बाद कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 43 भी यह निर्धारित करता है कि किसी भी कानून के तहत पहले से विवाहित व्यक्ति विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत दूसरी शादी का अनुबंध करता है, उसे कढउ की धारा 494 या धारा 495 के तहत अपराध माना जाएगा और विवाह शून्य हो जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा कि कि अपीलकर्ता के पास पत्नी से वैवाहिक संबंध तोड़ने और उसे समाज से वापस करने के लिए पर्याप्त आधार है।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही नहीं मानते हुए उसे निरस्त कर दिया 
अपीलकर्ता इस केस में अपना बचाव में सफल रहा है। प्रतिवादी पत्नी के लिए जो तथ्य सामने आए हैं, वह उचित नहीं है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही नहीं मानते हुए उसे निरस्त कर दिया है। साथ ही हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के तहत प्रतिवादी पत्नी की याचिका को खारिज करते हुए पति के पक्ष में फैसला दिया है।