विद्यार्थियों को बंधक बनाकर घर में झाड़ू पोछा लगवाने वाले स्कूल संचालक को आजीवन कारावास की मिली सजा
फर्जी दस्तावेजों से कर रहा था आवासीय स्कूल का संचालन
रायपुर। स्कूल की फर्जी तरीके से मान्यता लेकर बच्चो की खरीद फरोख्त करने वाले स्कूल संचालक को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। ये सजा संचालक को विभिन्न धाराओं में अलग-अलग अपराधों के लिए सुनाई गई है। इस मामले में मामले में कबीर नगर थाना में एफआईआर हुई थीं। दरसअल, वर्ष 2014-15 में आदिम जाति शिक्षा योजना के तहत कक्षा छठवीं के लिए प्रदीप कुरेटी, कुशल पात्र, मयंक मड़कम को वेदांता पब्लिक स्कूल कबीर नगर थाना क्षेत्र में प्रवेश दिलावने का निर्देश आदिम जाति विभाग ने दिया था। स्कूल संचालक सतीश उर्फ क्षितिज शर्मा ने बस्तर मित्र फाउंडेशन का अध्यक्ष होते हुए इस संस्था के तहत वेंदाता इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल की मान्यता के लिए संस्था का पंजीयन प्रमाण पत्र जारी करने की तिथि 8.2.2013 में परिवर्तन कर 8.2.2012 कर दिया। तथा फर्जी दस्तावेजों से स्कूल का संचालन कर शासन से 3 लाख 50 हजार का अनुदान भी प्राप्त कर लिया। बालकों को उनके परिजनों ने स्कूल संचालक को शिक्षा प्राप्त करने हेतु सौपा था। पर एक बच्चे कुशल पात्र ने घर वापस लौटने पर बताया कि स्कूल संचालक व उनकी पत्नी द्वारा अपने घर मे झाड़ू- पोछा करवाया जाता है। जिस पर विधायक को सूचित करते हुए स्कूल संचालक के घर मीडिया को लेकर जाने पर अन्य बच्चे भी वहां बंधक बन कर काम करते हुए मिले। कबीर नगर थाना में 19 जुलाई 2015 को धारा 370,420,467,468,471 के तहत जुर्म दर्ज किया गया था। जिसमे एक्ट्रोसिटी एक्ट भी जोड़ी गई थी। जिसके बाद स्कूल संचालक को 21 जुलाई 15 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। जहां वह 21.12. 2015 तक कुल 154 दिन जेल में रहा था। फिर उसे जमानत मिल गई थी।
मामले की सुनवाई स्पेशल एक्ट्रोसिटी कोर्ट में चल रही थी। जिसमे जज एस टेकाम ने मामले में दोष सिद्ध पाते हुए स्कूल संचालक को सजा सुनाई है। जिसके तहत आरोपी सतीश उर्फ क्षितिज उर्फ वृशांक सतीश कश्यप को धारा 370 में 14 वर्ष के सश्रम कारावास व एक हजार का दंड, धारा 420 में 7 वर्ष का सश्रम कारावास व एक हजार अर्थदंड, धारा 467 में दस वर्ष सश्रम कारावास व एक हजार का अर्थदंड, 468 में 7 वर्ष का कारावास व एक हजार का अर्थदंड, धारा 471 में दस वर्ष का कारावास व एक हजार का अर्थदंड, धारा 3 (1) (vi) में 5 वर्ष का कारावास व 1 हजार का अर्थदंड, व 3 (2)(vi) अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में आजीवन कारावास व एक हजार अर्थदंड की सजा सुनाई गई है।