महाप्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी ने किया मंदिर प्रवेश
मान गई माता लक्ष्मी और खोला श्रीमंदिर का पट
श्री जगन्नाथ मंदिर सेक्टर-4 में नीलाद्री बिजय का कार्यक्रम संपन्न
भिलाई। श्री जगन्नाथ मंदिर सेक्टर- 4 में श्री जगन्नाथ स्वामी जी के नीलाद्री बिजय कार्यक्रम को भक्ति भाव से संपन्न किया गया। रथयात्रा के अंतिम कड़ी के रुप में आज महाप्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी जी ने रथ से उतर कर मंदिर प्रवेश किया। परम्परा के अनुरुप भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी जी रथयात्रा से 9 जुलाई को श्रीमंदिर वापस लौटते हैं परंतु माता लक्ष्मी रुठी होने के कारण श्री मंदिर का पट नहीं खोलती। इसके फलस्वरुप श्री जगन्नाथ स्वामी रथ पर ही विराजमान रहते हैं।
12 जुलाई को श्री जगन्नाथ मंदिर, सेक्टर-4 में नीलाद्री बिजय का कार्यक्रम धूमधाम से मनाया गया। इसके तहत मां लक्ष्मी सर्वप्रथम भगवान श्री बलभद्र, व देवी सुभद्रा को मंदिर प्रवेश करने नहीं देती है। महाप्रभु को मंदिर में लौटते देख माता लक्ष्मी अपने दासियों को मंदिर का पट बंद करने का आदेश दे देती हैं। इसके फलस्वरुप महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी, मंदिर के बाहर ही माता से पट खोलने का आग्रह करते हुए कहते हैं कि बरसात व ठंड से मेरा शरीर कांप रहा है। इन नौ दिनों में मेरे शरीर ने काफी कष्ट उठाए हैं। प्रतिउत्तर में माता लक्ष्मी कहती हैं तुम तो अपने नंदी घोष में बैठ कर बड़े मजे से करोड़ो श्रद्धालुओं का भोग खाते रहे। आखिर तुम्हे कैसा कष्ट। भगवान जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी को मनाते हुए कहते हैं कि देवी मैने तुम्हारे लिए स्वर्ण अलंकार, शंखा साड़ी तथा विभिन्न प्रकार के सुन्दर वस्त्र व हाथों के लिए सोने की चूडिय़ा लाया हूँ। अब तो तुम पट खोल दो। माता लक्ष्मी नाराज होकर कहती हैं, आप जो भी चीज लाये हो अपनी बहन को दे दो। उन्हीं को लेकर आपने यात्रा की थी उसी को दे दो। श्री जगन्नाथ जी समझाते हुए कहते हैं मेरी छोटी सी बहन पर इतना क्यों नाराज हो रही हो। वो तो अभी बहुत छोटी है। माता लक्ष्मी जवाब देते हुए कहती है आप जिसे छोटी बता रहे हो वह छोटी नहीं है। वह पल में त्रिलोक का संहार कर सकती है। उसके जैसा कोई दूसरा नहीं है। भगवान जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी से कहते हैं कि ये सब बातें छोड़ो। इस घोर वर्षा में सिंह द्वारा में खड़े होकर मेरा शरीर कांप रहा है। तुम जल्दी से दरवाजा खोल दो। मैंने छप्पन प्रकार के भोग खाये हैं परंतु आपके हाथ से बना बाल भोग के लिए मेरा मन अधीर हो रहा है। तुम शीघ्र दरवाजा खोलो। प्रतिउत्तर में माता लक्ष्मी कहती हैं कि मुझे पता है कि आपका शरीर वज्र से भी कठोर है, वर्षा से कुछ नहीं होने वाला। आप जाइये अपनी बहन को लेकर यात्रा करते रहिए। माता की निष्ठूर वाणी सुन कर श्री जगन्नाथ स्वामी अपने बड़े भ्राता भगवान बलभद्र देव से अनुरोध करते है कि वे माता लक्ष्मी को द्वार खोलने के लिए कहें। भगवान बलभद्र देव जी माता लक्ष्मी से द्वार खोलने का आग्रह करते हैं। माता लक्ष्मी उनके आग्रह पर दासियों को द्वार खोलने का आदेश देती हैं। श्री मंदिर के पट खुलते ही भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी माता लक्ष्मी को समस्त उपहार देते हुए उनसे वादा करते हैं कि झूलन यात्रा में वे माता लक्ष्मी को साथ लेकर जायेंगे। माता लक्ष्मी भगवान को उनके मनपसंद पकवान बनाकर खिलाती हैं। प्रसाद वितरण के साथ ही नीलाद्री बिजय कार्यक्रम संपन्न होता है। रथ में एकादशी के अवसर पर भगवान को आकर्षक व सुन्दर स्वर्णवेश में सजाया गया।
सहयोग व विशेष योगदान
इस उत्सव को सफल बनाने में जगन्नाथ समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र सतपथी व महासचिव सत्यवान नायक पदाधिकारी सर्वश्री बसंत प्रधान, त्रिनाथ साहू, अनाम नाहक, डी त्रिनाथ, कालू बेहरा, भीम स्वांई, वृंदावन स्वांई, सुशांत सतपथी, प्रकाश दास, रंजन महापात्र, प्रकाश स्वांई, एस सी पात्रो, बीस केशन साहू, बी सी बिस्वाल, कवि बिस्वाल, कैलाश पात्रो,सीमांचल बेहरा, सुदर्शन शांती,संतोष दलाई,निरंजन महाराणा, शंकर दलाई, भीम सेठी, रवि स्वांई, शत्रुघन डाकुआ,वी के होता, रमेश कुमार नायक ने विशेष योगदान दिया। इस अवसर पर समिति के पदाधिकारी सहित गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।