दुष्कर्म पीड़िता को बच्चे को जन्म देने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर

इलाहाबाद हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी  

दुष्कर्म पीड़िता को बच्चे को जन्म देने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर

प्रयागराज (एजेंसी)। बुलंदशहर जनपद की 12 साल की दिव्यांग दुष्कर्म पीड़िता द्वारा अपनी 25 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न करने वाले पुरुष के बच्चे को जन्म देने के लिए किसी महिला को मजबूर नहीं किया जा सकता है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने दुष्कर्म पीड़िता की मां की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दी है। मामले में बुधवार को सुनवाई होगी। मेडिकल टमिर्नेशन आॅफ प्रेग्नेंसी अधिनियम की धारा 3 के अनुसार किसी महिला के गर्भ को समाप्त करने का समय 24 सप्ताह तक ही है। केवल विशेष श्रेणियों में अनुमति दी जा सकती है। कोर्ट ने याची की परिस्थितियों को देखते हुए मेडिकल रिपोर्ट तलब की है।
कोर्ट ने कहा कि किसी महिला के गर्भ के चिकित्सकीय समापन से इनकार करने और उसे मातृत्व की जिम्मेदारी से बांधने के अधिकार से इन्कार करना उसके सम्मान के साथ जीने के मानव अधिकार से इन्कार करना होगा। उसे अपने शरीर के संबंध में निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। वह मां बनने के लिए हां या ना कह सकती है। कोर्ट ने मामले की संवदेनशीलता को देखते हुए मानवीय आधार पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति से जवाहर लाल मेडिकल कॉलेज अलीगढ़ के प्राचार्य को प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की अध्यक्षता में पांच चिकित्सकों की टीम गठित कर पीड़िता की मेडिकल जांच कराने का निर्देश दिया है।  कोर्ट ने कहा है कि जांच कर 12 जुलाई को मेडिकल रिपोर्ट उसके समक्ष पेश की जाए। कोर्ट ने कहा है कि टीम में एनेस्थेटिस्ट, रेडियो डॉयग्नोसिस विभाग के एक-एक सदस्यों को भी शामिल करने को कहा है। याची की ओर से कहा गया कि दुष्कर्म पीड़िता बोलने और सुनने में असमर्थ है।  वह अपनी आप बीती किसी को नहीं बता सकती है। एक परिचित ने उसका कई बार यौन उत्पीड़न किया। उसने अपने साथ हुए उत्पीड़न की जानकारी अपनी मां को संकेतों के जरिये दी। इसके बाद मां की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ पॉस्को एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई। 16 जून को पीड़िता की मेडिकल जांच कराई गई तो उसे 23 सप्ताह का गर्भ था। 27 जून को मामले को मेडिकल बोर्ड के समक्ष रखा गया तो यह राय दी गई कि क्योंकि गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक है। लिहाजा, गभर्पात कराने से पहले अदालत के आदेश की अनुमति की आवश्यकता है। इसलिए वह हाईकोर्ट पहुंची।