मैं कौन हूँ का उत्तर ही बनता है योग की कुंजी, देहाभिमान छोड़ आत्मा स्वरूप को पहचानें-प्रो. गिरीश

दुर्ग। आनंद सरोवर, बघेरा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में चल रहे वाह जिंदगी वाह शिविर के पाँचवें दिन राजयोग मेडिटेशन विषय पर प्रोफेसर ब्रह्माकुमार ई. वी. गिरीश ने कहा कि योग तभी सहज होता है, जब हम स्वयं को साक्षी दृष्टा बनाकर देखते हैं। उन्होंने कहा कि “मैं कौन हूँ” का उत्तर मिल जाए, तो जीवन की जटिलताएँ सरल हो जाती हैं।

गिरीश ने समझाया कि आज लोग आसन और प्राणायाम को ही योग मान लेते हैं, जबकि पतंजलि अष्टांग योग आठ सूत्रों पर आधारित है। इन सबके बीच राजयोग मेडिटेशन श्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें मन और बुद्धि के तार सीधे परमात्मा से जुड़ते हैं। यही अभ्यास शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति का अनुभव कराता है।
उन्होंने कहा कि मन के भटकाव का मूल कारण देहाभिमान है। जब व्यक्ति स्वयं को केवल शरीर मानकर संबंध जोड़ता है, तब मन बार-बार लोगों और परिस्थितियों की ओर आकर्षित होता है। यदि हम स्वयं को आत्मा, एक प्रकाशबिंदु, चैतन्य शक्ति मानकर परमात्मा से जुड़ने का अभ्यास करें, तो योग सहज होने लगता है।

प्रो. गिरीश के अनुसार यह संसार एक रंगमंच है और हम सभी अपने-अपने किरदार निभाने वाले पात्र हैं। इस भाव के साथ जीने से परिस्थितियाँ हमें विचलित नहीं कर पातीं। उन्होंने कहा कि मन का बड़ा हिस्सा या तो टकराव वाले संबंधों पर जाता है या फिर आसक्ति पर। लेकिन जब सर्व संबंध परमात्मा से जुड़ जाते हैं, तो मन को स्थिरता मिलती है।
उन्होंने बताया कि साक्षी भाव से विचारों को देखना सीख लें, तो मन की गति धीमी होती है, तनाव घटता है और शांति बढ़ती है। नकारात्मक कल्पनाओं के बजाय सकारात्मक चिंतन को जीवन में शामिल करने की सलाह भी दी।
कार्यक्रम के अंत में बताया गया कि वाह जिंदगी वाह के बाद अब 15 दिवसीय शांति अनुभूति शिविर का आयोजन किया जा रहा है, जो 26 दिसंबर से 10 जनवरी तक चलेगा। प्रतिभागी आनंद सरोवर बघेरा और राजऋषि भवन केलाबाड़ी सेवाकेंद्रों में चार सत्रों में से किसी एक में शामिल हो सकते हैं। सत्र समय सुबह 8 से 9, 10 से 11, शाम 5 से 6 और रात 7 से 8 बजे रहेगा।

