बस्ते के बोझ से स्कूली बच्चे हो रहे पीठ दर्द के शिकार

निजी स्कूलों में बढ़ते बस्ते के बोझ छात्र व अभिभावक दोनों परेशान

बस्ते के बोझ से स्कूली बच्चे हो रहे पीठ दर्द के शिकार

बोझ इतना कि बच्चे ठीक से चल भी नहीं पाते
भिलाई (सुभांकर रॉय)।  स्कूली बच्चों के बस्ते के बोझ में कमी लाने की दिशा में अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के बस्ते का बोझ कम करने प्रशासन द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर दुर्ग जिले के  प्राइवेट स्कूलों में बस्ते का बोझ पहले से दोगुना हो गया है। छात्र अपने वजन से 40 फीसदी ज्यादा वजन वाले बस्ते ढोने के कारण पीठ दर्द व कमर दर्द के शिकार हो रहे है। बस्ते के अधिक बोझ का विद्यार्थियों पर प्रतिकुल  प्रभाव डाल रहा है। इसके खिलाफ अब अभिभावक आवाज बुलंद करना शुरू कर दिये हैं।


एनसीईआरटी के मुताबिक स्कूली बैग का वजन बच्चे के वजन से 10 प्रतिशत अधिक नहीं होना चाहिए। नियमों के हिसाब से बस्ते का अधिकतम वजन 6 किलो तक ही है लेकिन यहां तो 10 किलो तक के भी स्कूल बैग कंधों पर नजर आए। कई छोटे बच्चे इतना भारी बस्ता लेकर चल है कि उनसे सीधा चला भी नहीं जा रहा।
बस्ते का बोझ बच्चों की शिक्षा, समझ और उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। बस्ते के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को नन्हीं उम्र में ही पीठ दर्द जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। इसका हड्डियों और शरीर के विकास पर भी विपरीत असर होने का अंदेशा से इंकार नहीं किया जा सकता। 7 से 14 वर्ष के लगभग 80 फीसदी बच्चे पीठ दर्द से परेशान है। बस्ते का वजन बच्चे के वजन से करीब 40 फीसदी ज्यादा हो गया है। 
बच्चों के लगातार बस्तों के बोझ को सहन करने से उनकी कमर की हड्डी टेढ़ी होने की आशंका रहती है। अगर बच्चे के स्कूल बैग का वजन बच्चे के वजन से 10 प्रतिशत से अधिक होता है तो काइफोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे सांस लेने की क्षमता प्रभावित होती है। भारी बैग के कंधे पर टांगने वाली पट्टी अगर पतली है तो कंधों की नसों पर असर पड़ता है। कंधे धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते हैं और उनमें हर समय दर्द बना रहता है। हड्डी के जोड़ पर असर पड़ता है।
ध्यान देने योग्य बात है कि सरकारी स्कूल वालों के बस्ते निजी स्कूल वालों के बस्तों से काफी हल्के हैं। सरकारी स्कूलों में प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा, गणित के अलावा एक या दो पुस्तकें हैं लेकिन निजी स्कूलों के बस्तों का भार बढ़ता जा रहा है।