होलिका दहन के लिए चढ़ाई जा रही है हरे-भरे पेड़ों की बलि

युवा व बच्चों की टोली रातों रात कर दे रहे हैं जंगल साफ

होलिका दहन के लिए चढ़ाई जा रही है हरे-भरे पेड़ों की बलि
यह फोटो ग्रीन चौक दुर्ग के पास का है। जहां कभी हरियाली हुआ करता था, बच्चों व युवाओं की टोली ने पूरा मैदान साफ कर दिया है।

दुर्ग। अलगे माह होली है। होलिका दहन के लिए कुछ लोगों द्वारा हरे भरे पेड़ों को काटा जा रहा है। इनमें बच्चों की संख्या ज्यादा है जो जागरूकता की कमी और अशिक्षा के कारण हरे-भरे छायादार पेड़ों को काट कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पेड़ काटने से होने वाले नुकसान की गणना संभव नहीं हैं, क्योंकि इसके प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों लाभ हैं। होली पर पानी के साथ पेड़ों को बचाने जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, तभी होली सही मायने में मनानी सार्थक होगी।
ज्ञात हो कि 8 मार्च बुधवार को होली है। होलिका दहन 7 मार्च को किया जाना है। शहर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं सहित किशोरों की टोलियां होली उत्सव मनाने की तैयारी में जुट गए हैं। गली-मुहल्लों में होलिका उत्सव मनाने के लिए अभी से लकड़ियां एकत्रित की जा रही है। एक ओर जहां पर्यावरण संरक्षकण के लिए पौधों लगाने की बात कही जाती है तो दूसरी ओर लोगों द्वारा होली के पर्व के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटा जा रहा है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों में जागरूकता की कमी बनी हुई है। अपने स्वार्थ के कारण प्राण वायु प्रदान करने वाले वृक्षों को काटने में भी संकोच नहीं करते। 
वर्षों लग जाते हैं पौधे को पेड़ बनने में: होलिका के लिए लोग हरे पेड़ काट रहे हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। होलिका दहन के लिए सूखी लकड़ियों का उपयोग करें। पेड़ से हमें फल, फूल, छाया, डाल, हरियाली, शुद्ध हवा आदि मिलती है। बावजूद इसके होली त्योहार के लिए  हरे भरे व छायादार पेड़ों की बलि चढ़ाया जा रहा है। एक पौधे को पेड़ बनने में वर्षों लग जाते हैं। ऐसे में हरे भरे पेड़ों को काटना किसी पाप से कम नहीं। सूखी लकड़ी खरीदने की बजाय लोग हरे पेड़ों की डाल काट डालते हैं। वहीं बच्चे डाल की बजाय पूरे पेड़ को तहस-नहस कर रहे हैं।