जगद्धात्री पूजा में उमड़े श्रद्धालु, चढ़ाया गया छप्पन भोग
बंगाली समाज द्वारा किए गए विशेष आयोजन
कालीबाड़ी हुडको भिलाई
हाउसिंग बोर्ड कलीबाड़ी भिलाई
भिलाई। 2 नवंबर बुधवार को दुर्ग-भिलाई के मंदिरों में बंगाली समाज द्वारा जगद्धात्री पूजा का आयोजन किया गया। जगद्धात्री पूजा का नवरात्रि पूजा की तरह विशेष स्थान है। ये पूजा पश्चिम बंगाल और ओडिशा के साथ ही अब पूरे विश्व में मनाई जाती है। यह माँ दुर्गा का ही एक स्वरूप है। दुर्गा के इस रूप की पूजा गोस्थाष्ट्मी के दिन होती है। यह एक दुर्गा पूजा की तरह ही होती है, जो अष्टमी तिथि के दिन शुरू होकर, दशमी के दिन समाप्त होती है। ये 2 नवंबर से 5 नवंबर तक मनाई जाएगी। 5 नवंबर को अष्टमी का दिन है, जिसका विशेष महत्व होता है। इस आयोजन के तहत एक ही दिन में सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी की पूजा की गई। कहीं-कहीं यह पूजा तीन दिन तक चलता है।
सुबह माँ जगद्धात्री की मूर्ति स्थापना के साथ ही सुबह पुष्पांजलि दी गई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए। भिलाई के हुडको कालीबाड़ी, सेक्टर-6 कालीबाड़ी तथा हाउसिंग बोर्ड कालीबाड़ी में जगधात्री पूजा को लेकर विशेष तैयारी की गई थी। सुबह से ही मंदिरों में बंगाली समाज के लोग व श्रद्धालुआें का तांता लगा रहा। सुबह करीब 7.30 बजे पूजा प्रारंभ की गई। तत्पश्चात 12 बजे पुष्पांजलि का आयोजन किया गया। वहीं दोपहर को प्रसादी के रूप में भोग का वितरण भी श्रद्धालुआें को की गई। ज्ञात हो कि माँ दुर्गा की पूजा के जैसा ही माँ जगद्धात्री पूजा को किया जाता है। इसमें खासतौर पर मनुष्य को अपनी ज्ञाननेद्रियों पर नियंत्रण रखने का ज्ञान मिलता है। अभिमान का नाश ही इस उत्सव का मकसद है। इस त्यौहार में जगधात्री देवी की प्रतिमा को सुन्दर लाल साड़ी, तरह- तरह के जेवर पहनाये जाते है। देवी की प्रतिमा को फूलों की माला से भी सजाया जाता है। देवी जगद्धात्री और देवी दुर्गा का स्वरुप बिलकुल एक जैसा होता है। नव रात्रि के जैसा ही इसका आयोजन किया जाता है।
जगद्धात्री माता, माँ दुर्गा का ही एक स्वरूप हैं शरद ऋतू के प्रारंभ में इनकी पूजा का महत्व बताया जाता हैं। यह तंत्र से उत्पन्न हुई हैं यह माँ काली एवं दुर्गा के साथ ही सत्व के रूप में हैं। इन्हें राजस एवं तामस का प्रतीक माना जाता हैं। यह पर्व दुर्गा नवमी के एक माह के बाद मनाया जाता हैं। चन्दन नगर प्रान्त में इस पर्व का जन्म हुआ था। इस त्यौहार को भव्य रूप से मनाया जाता हैं। जगद्धात्री पूजा कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर दशमी तक मनाया जाता हैं।
जगद्धात्री माता के रूप का वर्णन
जगद्धात्री माता का रंग सुबह के सूर्य की लालिमा के समान होता हैं इनकी तीन आँखे एवम चार हाथ हैं जिनमे शंख, धनुष,तीर, एवम चक्र हैं। माता लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं, गहने धारण करती हैं नगजन्गोपवीता धारण करती हैं। माता सिंह पर सवारी करती हैं जो कि एक मृत दानव हाथी पर खड़ा हैं। इसके पीछे एक बात विख्यात हैं कि यह प्रतिमा यह कहती हैं माता उन्ही के ह्रदय में वास करती हैं जो अपने अंदर उन्मत हाथी के भाव को नियंत्रित कर सकते हैं, अर्थात जो अपने गलत एवम अहम भाव को खत्म कर चुके हैं।
जगद्धात्री पूजा का इतिहास
कहते है इस त्यौहार की शुरुआत रामकृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने रामकृष्ण मिशन में की थी। वे भगवान के पुनर्जन्म में बहुत विश्वास रखती थी। इसकी शुरुवात के बाद इस त्यौहार को दुनिया के हर कोने में मौजूद रामकृष्ण मिशन के सेंटर में मनाने लगे थे। इस त्यौहार को माँ दुर्गा के पुनर्जन्म की खुशी में मनाते है। माना जाता है देवी, प्रथ्वी पर बुराई को नष्ट करने और अपने भक्तों को सुख शांति देने आई थी।
जगद्धात्री पूजा का चन्दन नगर इतिहास
चन्दन नगर उन स्थानों में से है,जहाँ कभी अंग्रेजी हुकूमत नहीं रही। इसी स्थान से जगद्धात्री पूजा का जन्म हुआ। चन्दन नगर में चन्दन का व्यापार सर्वाधिक होता हैं एवं इसमें बहती नदी का आकार आधे चाँद के समान हैं, शायद इसलिए इस जगह का नाम चन्दन नगर हैं। इस जगह पर फ्रांस के राजा का राज्य था उस समय एक बड़े व्यापारी हुआ करते थे, जिन्हें कई बड़े अधिकार प्राप्त थे। उनका नाम इंद्रनारायण चौधरी था। सन 1750 में इन्होने सबसे पहले अपने घर में जगद्धात्री पूजा की, जिसके बाद से यह पूजा बढ़ते- बढ़ते एक भव्य रूप ले लिया। अब यह पूजा पूरे चन्दन नगर के साथ पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ सहित पूरे विश्व में उत्साह के साथ मनाया जाता है।