हिन्दू धर्म के आस्था पर चोट पहुंचाने वालों पर राज्य शासन से कठोर कार्रवाई की मांग
भिलाईनगर। रबिन्द्र निकेतन कालीबाड़ी हुडको मामले में हाईकोर्ट ने 30 नवंबर तक स्टे लगा दिया है और 1 दिसंबर से सुनवाई शुरू होगी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी कुछ लोगों द्वारा अपनी राजनीतिक रोटी सेकने अनर्गल टिप्पणी की जा रही है जिससे हिन्दू संगठनों में आक्रोश व्याप्त है तथा लोगों के आस्था पर चोट पहुंचाने कारण राज्य शासन से कठोर से कठोर कार्रवाई की मांग की गई है।
रबिन्द्र निकेतन कालीबाड़ी हुडको के सचिव रुपक दत्ता व श्यामल रॉय ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि कुछ लोगों द्वारा गलत बयानबाजी कर लोगों के आस्था को चोट पहुंचाया गया है। हाईकोर्ट से न तो तोडफ़ोड़ का आदेश पारित हुआ है और न ही सामनों को फेंके जाने का। अगर उनके पास संबंधित हाईकोर्ट का कोई दस्तावेज है तो आम जनता के समक्ष प्रस्तुत करें। रुपक दत्ता ने बताया कि भिलाई स्टील सिटी चेंबर के अध्यक्ष ज्ञानचंद जैन अपनी विलुप्त होते राजनीतिक रोटिया सेकने आम जनता के बीच गलत व झूठी बयानबाजी कर शांतप्रिय भिलाईवासियों के बीच अशांति फैलाने का काम किया जा रहा है। हाईकोर्ट में शिकायतकर्ता भी ज्ञान चंद ने नहीं है, कोई और व्यक्ति है। ज्ञानचंद का इस मंदिर से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश से व्यथित ज्ञानचंद जैन हिन्दू मंदिर को तोड़वाने के लिए लगे पड़े हुए है। ज्ञानचंद जैन के इस बयानबाजी से हिन्दू संगठनों में काफी आक्रोश व्याप्त है और राज्यशसान से शांतप्रिय भिलाई में धार्मिक माहौल खराब करने के प्रयास पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
श्यामल रॉय ने बताया कि हाईकोर्ट में शिकायत के बाद कलेक्टर को जांच के आदेश दिए गए थे। कलेक्टर ने इसके लिए नजूल को निर्देशित किए। आरआई द्वारा नायब तहसीलदार को बिना किसी जांच के अवैध निर्माण होना बताया दिया गया। तत्पश्चात स्थानीय प्रशासन द्वारा तोडफ़ोड़ का आदेश जारी कर दिया गया जो लोगों के समझ के परे है। जबकि हाईकोर्ट ने सिर्फ जांच के आदेश दिए थे।
सन् 2008 को हुडको की जमीन नजूल को हस्तांतरित
रबिन्द्र निकेतन कालीबाड़ी हुडको के श्यामल रॉय ने बताया कि यह संस्था विगत 35 वर्षों से संचालित है जिसकी पंजीयन क्रमांक 22313 है। भूमि आबंटन के समय संस्था द्वारा भिलाई इस्पात संयंत्र के संपदा विभाग को भी शुल्क पटाया गया है जो आज भी जमा है। सन 2008 में हुडको स्थित बीएसपी की भूमि नजूल विभाग दुर्ग को हस्तांतरित कर दी गई। तत्पश्चात कुछ आरजक तत्वों द्वारा मिथ्या प्रकरण बनाकर शिकायत की गई जो उच्च न्यायालय में लंबित है और 1 दिसंबर के बाद सुनवाई प्रारंभ होगी।
35 वर्षों से संचालित है संस्था
श्यामल रॉय ने बताया कि रबीन्द्र निकितेन, आमदी नगर हुडको, सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1973 के अधीन दिनांक 06/07/1988 को राज्य शासन द्वारा पंजीकृत की गई है, जिसका पंजीयन क्रमांक 22313 है। संस्था समय-समय पर सामाजिक एवं धार्मिक कार्य भी किया जाता है। वर्तमान में इस संस्था में लगभग 450 लोग सदस्य है यह संस्था 1985 से कार्य कर रही है। उन्होंने बताया कि रबीन्द्र निकितेन द्वारा सन 1989 में भूमि में मंदिर बनाने का कार्य प्रारंभ किया गया। संस्था द्वारा भूमि का विधिक अधिकार प्राप्त करने के लिये भिलाई इस्पात संयंत्र से संपर्क किया गया। दिनांक 27.12.2000 को भिलाई इस्पात संयंत्र को भूमि आंबटन हेतु आवश्यक राशि अदा की गई, जिसके पश्चात भिलाई इस्पात प्रबंधन एवं छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल द्वारा मंदिर में स्थायी विद्युत कनेक्शन प्रदान किया गया।
राज्य शासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा कराए गए कई विकास कार्य
सचिव रूपक दत्ता ने बताया कि राज्य के पूर्व सांसद मोतीलाल वोरा, ताराचंद साहू एवं सुश्री सरोज पांडेय, छत्तीसगढ़ राज्य के मंत्री तरुण चटर्जी एवं विधायक बदरुद्दीन कुरेशी द्वारा समय-समय पर रबीन्द्र निकेतन संस्था को आवश्यक निधि प्रदान की गई है जिससे सामुदायिक भवन के निर्माण तथा मंदिर के विस्तार किया गया। शासन के अनुमोदन पर तरूण चटर्जी तत्कालीन छग शासन मंत्री व महापौर रायपुर द्वारा वर्ष 2003 में 3 लाख रुपए का अनुदान दिया गया। शासन द्वारा अनुदानित सांस्कृतिक भवन के निर्माण के लिए जिला योजना एवं सांखिकीय दुर्ग से तत्कालीन विधायक प्रेमप्रकाश पाण्डेय विधायक निधि द्वारा 22.09.2008 को 3 लाख रुपए स्वीकृत कर सांस्कृतिक भवन का निर्माण किया गया था। स्थानीय विकास योजना अंतर्गत सांसद निधि से रबिन्द्र निकेतन कालीबाड़ी हुडको के प्रथम तल पर हॉल निर्माण के लिए 25.07.2013 को 5 लाख रुपए की स्वीकृति दी गई थी। सन 2013 में तत्कालीन विधायक बदरूद्दीन कुरैशी द्वारा विधायक निधि से 2 लाख 4 हजार रुपए स्वीकृत कर कालीबाड़ी मंदिर में भवन निर्माण कार्य पूर्ण किया गया। सन् 2014 में सांसद निधि से सामुदायिक भवन निर्माण प्रथम तल कालीबाड़ी हुडको को 5 लाख रुपए स्वीकृति के लिए प्रस्तावित की गई थी। शासन द्वारा सम्पूर्ण दस्तावेज पूर्ण होने पर ही पूरे निर्माण कार्य को स्वीकृति दी जाती है। साथ ही दस्तावेज पूर्ण होने पर ही शासन द्वारा निधि स्वीकृत कर कार्य पूर्ण किया गया। अब सवाल यह है कि शासन-प्रशासन द्वारा मंदिर में कराए गए विकास कार्य अवैध अतिक्रमण व निर्माण की श्रेणी में कैसे आ गया।