सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विचाराधीन कैदियों की रिहाई सही मायने में आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वर्षों से जेल में बंद कैदियों की रिहाई ही भारत की आजादी के 75वें वर्ष (अमृत महोत्सव) का जश्न मनाने का एक सही तरीका होगा। केंद्र सरकार को जल्द ऐसी कोई योजना तैयार करनी चाहिए जिससे विचाराधीन व छोटे अपराधों में शामिल कैदियों की रिहाई हो सके।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, अगर न्यायपालिका 10 साल के भीतर मामलों का फैसला नहीं कर सकती है तो कैदियों को आदर्श रूप से जमानत पर छोड़ दिया जाना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को 10 साल बाद अंतत: बरी कर दिया जाता है तो उसे अपने जीवन के साल वापस नहीं मिल सकते हैं। जस्टिस कौल ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा, सरकार आजादी के 75 साल को ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रही है। ऐसे विचाराधीन व वे कैदी जो अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा जेल में काट चुके हैं, उन्हें रिहा करने का उपाय करना सही मायने में उत्सव का उपयोग है।
आइडिया यह है कि जेलों और ट्रायल कोर्ट का बोझ कम हो। इसके लिए केंद्र को राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से बातचीत कर नीति विकसित करनी चाहिए। जिससे कुछ श्रेणियों के विचाराधीन कैदियों व दोषियों को एक निश्चित अवधि के बाद रिहा किया जा सके। पीठ ने ये टिप्पणियां तब कीं जब उसने देश के हाईकोर्ट में लंबे समय से लंबित अपीलों और जमानत आवेदनों का जायजा लिया और पाया कि आरोपी और दोषी मामलों के निपटारे की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पिछले साल पीठ ने विचाराधीन कैदियों और अपील के लंबित रहने के दौरान कैदियों को जमानत देने के अपने निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी को लेकर स्वत: संज्ञान कार्यवाही शुरू की थी।
ऐसा बिलकुल नहीं कि अपराध करने वाले को सजा नहीं होनी चाहिए
पीठ ने कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि जिसने अपराध किया है उसे कैद नहीं होना चाहिए। लेकिन लंबे समय तक ट्रायल चलना और किसी को दोषसिद्धि के बिना लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखना समाधान नहीं हो सकता है। साथ ही, पहली बार छोटे अपराधों के दोषियों को अच्छे व्यवहार के बांड पर रिहा किया जा सकता है।
इसी तरह, संभावित सजा का एक तिहाई या इससे अधिक की अवधि से जेल में गुजारने के बाद विचाराधीन कैदियों को भी जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। जवाब में एएसजी नटराज ने कहा, पीठ के सुझाव को मौजूदा कानूनी ढांचे के तहत परीक्षण करना होगा।