क्राइम-डॉन एक्सक्लुसिव: रेरा का भिलाई के यूनिक दहाटे अपार्टमेंट के पार्टनर्स पर बड़ी कार्रवाई
18 लाख लेने के बाद भी नहीं किया रजिस्ट्री
दो माह के भीतर 18 लाख रुपए व ब्याज के 13.8 लाख भुगतान के निर्देश
भिलाई। लाखों रुपए देने के बाद भी मकान का रजिस्ट्रेशन नहीं करने की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए 29 अगस्त 2022 सोमवार को छत्तीसगढ़ भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) रायपुर ने भिलाई के कोहका स्थित यूनिक दहाटे अपार्टमेंट के तीनों पार्टनर्स श्रीमती शकुंतला दहाटे शांतिनगर, मोहम्मद वकील अहमद निवासी इस्पात नगर रिसाली तथा मोहम्मद रशीद निवासी सेक्टर-6 भिलाई के विरूद्ध आदेश पारित करते हुए दो माह के भीतर आवेदक द्वारा भुगतान की गई राशि रूपये 18 लाख रुपए वापस करने तथा 15 अगस्त 2022 से अब तक (7 वर्ष 5 माह) का ब्याज की राशि रुपए 13 लाख 8 हजार 300 रुपए दो माह के भीतर भुगतान करने के निर्देश दिए गए हैं।
क्राइम डॉन को मिली जानकारी के अनुसार आवेदक मोहम्मद नईम, पिता जमीलुद्दीन, निवासी- प्लॉट नं. - 28, नूरी मस्जिद रोड, फरीद नगर, कोहका भिलाई के द्वारा भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 की धारा-31 के अंतर्गत निर्धारित प्रारूप डी (फार्म-डी) में आवेदन कर यूनिक दहाटे अपार्टमेंट के पार्टनर्स श्रीमती शकुन्तला दहाटे, निवासी मकान नं. 430, जीरो रोड, शांति नगर भिलाई, मोहम्मद वकील अहमद निवासी मकान नं. 5 / 1, इस्पात नगर रिसाली, भिलाई तथा मोहम्मद रशीद, निवासी-ब्लॉक नं.- 2 / एफ, सड़क मंत्र- 39, सेक्टर-6, भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.) के विरूद्ध शिकायत प्रस्तुत की गई थी। आवेदक का कथन है कि उसने अनावेदक श्रीमती शकुन्तला दहाटे, निवासी मकान नं. 430, जीरो रोड, शांति नगर भिलाई के स्वामित्व की मौजा कोहका, खसरा नं. - 7215 / 2 पर स्थित भूमि पर अनावेदकगण द्वारा विकसित किये जा रहे प्रोजेक्ट यूनिट दहाटे अपार्टमेंट में ब्लॉक-बी में तृतीय तल पर स्थित फ्लैट क्रमांक- 105 को 30,00,000 रुपए में क्रय करने हेतु अग्रिम राशि रूपये 18,00,000 रुपए का भुगतान चेक के माध्यम से करते हुये दिनाँक 11.03.2015 को अनावेदकगण के साथ विक्रय इकरारनामा निष्पादित किया था। इकरारनामा अनुसार शेष राशि 12,00,000 रुपए का भुगतान रजिस्ट्री के समय किया जाना था। आवेदक के अनुसार उसने अनावेदकगण से रजिस्ट्री कर आधिपत्य सौंपने हेतु अनेकों बार अनुरोध किया। परन्तु अनावेदकगण द्वारा ना तो रजिस्ट्री कराई गई और ना ही आधिपत्य प्रदान किया गया। आवेदक ने आगे बताया है कि नगरपालिक निगम, भिलाई से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रश्नाधीन अपार्टमेंट को भवन पूर्णता प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। आवेदक के अनुसार प्रोजेक्ट का क्षेत्रफल 2230.51 वर्गमीटर है और अनावेदकगण द्वारा रेरा अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुये निर्माण कार्य किया गया है। आवेदक ने यह भी लेख किया है। कि अनावेदकगण ने प्रश्नाधीन फ्लैट का निर्माण कार्य आज दिनाँक तक पूर्ण नहीं किया है।
अत: आवेदक ने भुगतान की गई राशि मय ब्याज वापस दिलाये जाने, निर्माणाधीन फ्लैट के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगाये जाने तथा क्षतिपूर्ति दिलाये जाने का अनुरोध किया है। इसके अतिरिक्त आवेदक ने वाद व्यय दिलाये जाने का भी अनुरोध किया है।
प्रस्तुत आवेदन पर प्रकरण पंजीबद्ध कर अनावेदकगण को उक्त शिकायत के संबंध में प्राधिकरण के समक्ष जवाब प्रस्तुत करने एवं अपना पक्ष रखने हेतु उपस्थित होने बाबत् रजिस्टर्ड डाक से नोटिस प्रेषित कर सूचित किया गया। उन्हें ई-मेल के द्वारा भी नोटिस एवं दस्तावेज प्रेषित किये गये।
अनावेदकगण ने आवेदक के आवेदन को अस्वीकार करते हुये अपने विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से प्रस्तुत जवाब / आपत्ति में यह लेख किया है कि उनके द्वारा ग्राम- कोहका, प.ह.नं.-14, खसरा नं.- 7215 रकबा 1576 वर्गफीट जिला-दुर्ग में परिवर्तित भूमि पर अपार्टमेंट निर्माण हेतु समस्त आवश्यक अनुमतियाँ प्राप्त कर बहुमंजिला आवासीय परिसर का निर्माण किया जा रहा है। उक्त परिसर में ब्लॉक-बी में फ्लैट क्रमांक- 105 को आवेदक को रूपये 30,00,000/- में सशर्त विक्रय करने हेतु बयाना स्वरूप रूपये 18,00,000/- प्राप्त कर दिनाँक 11.03.2015 को विक्रय इकरारनामा निष्पादित किया गया ।
अनावेदकगण के अनुसार आवेदक ने शेष राशि का भुगतान रजिस्ट्री के समय करना था । परन्तु आवेदक से अनेकों बार अनुरोध करने के बावजूद भी आवेदक ने आज दिनाँक तक सौदेशुदा फ्लैट का पंजीयन नहीं कराया है। अनावेदकगण ने आवेदक को उक्त संबंध में विधिक नोटिस भी भेजने का उल्लेख किया है। अनावेदकगण अनुसार आवेदक इकरारनामा अनुसार फ्लैट का पंजीयन नहीं करना चाहता है, इसलिये आवेदक ने अनावेदकगण को परेशान करने के उद्देश्य से झूठी शिकायत प्रस्तुत की है। अनावेदकगण ने यह भी लेख किया है कि आवेदक ने इकरारनामा की कंडिका-2 में बयाना राशि नहीं लौटाये जाने संबंधी शर्त से बचने की मंशा से सारहीन आवेदन प्रस्तुत किया है; जबकि अनावेदकगण आवेदक के पक्ष में रजिस्ट्री निष्पादित कर कब्जा सौंपने हेतु तैयार हैं। अनावेदकगण ने आगे बताया है कि उन्होंने विधिवत् प्राप्त अनुमतियाँ प्राप्त करने उपरांत निर्माण कार्य प्रारंभ किया है और यदि निर्माण के समय रेरा अधिनियम लागू होता, तो वे प्रोजेक्ट का छ.ग. रेरा में पंजीयन भी कराते । परन्तु अधिनियम का प्रवर्तन निर्माण कार्य प्रारंभ करने के पश्चात् हुआ है। अनावेदकगण ने यह भी उल्लेखित किया है कि आवेदक के कथनानुसार वाद कारण दिनाँक 11.03.2015 को उत्पन्न हुआ है, परन्तु आवेदक ने निर्धारित समय सीमा 2 वर्ष के भीतर कोई शिकायत प्रस्तुत नहीं की है, इसलिये आवेदक द्वारा प्रस्तुत शिकायत समय बाधित है। अत: अनावेदकगण ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर आवेदक द्वारा प्रस्तुत विधि विपरीत शिकायत को अस्वीकार किये जाने का अनुरोध किया है।
प्रकरण में उभय पक्षों द्वारा अपने-अपने पक्ष के समर्थन में दस्तावेज और सुसंगत तर्क प्रस्तुत किये गये। आवेदक के आवेदन, अनावेदकगण के जवाब, उभय पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के परिशीलन तथा उनके द्वारा प्रस्तुत तर्कों पर मनन करने उपरांत प्रकरण में निम्न विचारणीय बिन्दु उत्पन्न होते हैं :
1. क्या आवेदक द्वारा प्रस्तुत शिकायत भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 अंतर्गत पोषणीय है ? क्या आवेदक प्राधिकरण के माध्यम से अनुतोष प्राप्त करने का हकदार है ? यदि हाँ, तो उसका स्वरूप क्या होगा ?
विचारणीय बिन्दु क्रमांक 1 :- प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि आवेदक ने अनावेदकगण के प्रोजेक्ट "यूनिक दहाटे अपार्टमेंट" ग्राम- कोहका, भिलाई, जिला - दुर्ग (छ.ग.) में ब्लॉक-बी तृतीय तल पर स्थिति फ्लैट क्रमांक - 105 को कुल राशि रुपये 30,00,000/- में क्रय करने हेतु रूपये 18,00,000/- का अग्रिम भुगतान कर दिनाँक 11.03.2015 को अनावेदकगण के साथ विक्रय इकरारनामा निष्पादित किया है। आवेदक ने अनावेदकगण द्वारा निर्माण कार्य पूर्ण नहीं किये जाने, छ.ग. रेरा में प्रोजेक्ट का पंजीयन नहीं कराये जाने तथा अनेकों बार अनुरोध करने पर भी पंजीयन कराकर आधिपत्य नहीं सौंपने के कारण भुगतान की गई राशि मय ब्याज वापस चाही है । परन्तु अनावेदकगण ने अपने जवाब में वाद कारण वर्ष 2015 में उत्पन्न होने के कारण आवेदक द्वारा प्रस्तुत शिकायत को समय बाधित बताते हुये निरस्त किये जाने योग्य बताया है। इस संबंध में प्रकरण में प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन व उभय पक्षों के अभिकथनों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि आवेदक को आज दिनाँक तक प्रश्नाधीन फ्लैट का पंजीयन कर आधिपत्य प्राप्त नहीं हुआ है। अर्थात् प्रकरण में वाद कारण निरंतर बना हुआ है और आबंटिती द्वारा एक बड़ी राशि का भुगतान करने के बावजूद भी उसे फ्लैट का आधिपत्य आज दिनाँक तक अप्राप्त है। ऐसी परिस्थिति में न्यायहित में आवेदक के आवेदन को समय बाधित नहीं माना जा सकता है। अत: आवेदक द्वारा प्रस्तुत आवेदन भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 अंतर्गत पोषणीय है।
प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदकगण ने वर्ष 2015 में सौदेशुदा फ्लैट के पेटे में रूपये 18,00,000/- प्राप्त किया है। आवेदक ने अपने शिकायत पत्र में अनावेदकगण द्वारा पंजीयन कराकर आधिपत्य प्रदान नहीं किये जाने का लेख किया है। साथ ही आवेदक ने फ्लैट के निर्माण को भी अपूर्ण बताया है। अनावेदकगण ने अपने जवाब में आवेदक के उपरोक्त अभिकथन को स्वीकार करते हुये लेख किया है कि उनके द्वारा अनेकों बार अनुरोध करने के बावजूद भी आवेदक ने सौदेशुदा फ्लैट का पंजीयन नहीं कराया है और अब शेष राशि का भुगतान करने से बचने के उद्देश्य से इकरारनामा में बयाना नहीं लौटाये जाने संबंधी उल्लेखित शर्त के विपरीत मिथ्या शिकायत प्रस्तुत की है। प्रश्नाधीन सौदे के संबंध में उभय पक्षों के मध्य निष्पादित इकरारनामा दिनाँक 11.03.2015 महत्वपूर्ण दस्तावेज है। उक्त इकरारनामा में सौदा राशि रूपये 18,00,000/- प्राप्त होने की अभिस्वीकृति तथा शेष राशि रूपये 12,00,000/- का भुगतान रजिस्ट्री के समय किये जाने का उल्लेख है। इकरारनामा में यह भी उल्लेखित है कि पक्षकार क्रमांक - 1 एनेक्सर - ए के समयानुसार बकाया राशि का भुगतान करने से प्रकोष्ठ (फ्लैट) निर्माण कर देगा परन्तु प्रकरण में दोनों ही पक्षों द्वारा उक्त एनेक्सर - ए की छायाप्रति प्रस्तुत नहीं की गई है। ऐसी परिस्थिति में इकरारनामा के आधार पर यह विनिश्चय किया जाना संभव नहीं है कि सौदे अनुसार अनावेदकगण को कब तक फ्लैट का निर्माण कार्य पूर्ण कर आधिपत्य सौंपना था? प्रकरण में दोनों ही पक्षों द्वारा रजिस्ट्री की प्रक्रिया को पूर्ण करने में एक-दूसरे के द्वारा विलंब किये जाने का लेख किया गया है । हाँलाकि अनावेदकगण ने अपने जवाब में आवेदक को पंजीयन हेतु विधिक सूचना प्रेषित किये जाने का लेख किया है। लेकिन अनावेदकगण ने उक्त कथन को प्रमाणित करने हेतु प्रकरण की सुनवाई के दौरान कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। यहाँ यह भी उल्लेखित करना सुसंगत होगा कि आवेदक ने आज दिनाँक तक फ्लैट के निर्माण को अपूर्ण बताया है। परन्तु अनावेदकगण ने आवेदक के उपरोक्त अभिकथन को अन्यथा प्रमाणित करने हेतु कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है और ना ही प्रश्नाधीन फ्लैट की वर्तमान स्थिति के संबंध में कोई उल्लेख किया है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि आवेदक ने वर्ष 2015 में ही प्रतिफल की 60 प्रतिशत राशि का अग्रिम भुगतान कर दिया था । यदि आवेदक फ्लैट क्रय करने हेतु इच्छुक नहीं होता, तो 60 प्रतिशत राशि का भुगतान क्यों करता ? उपरोक्त तथ्यों के आधार पर आवेदक के कथन कि अनावेदकगण से लगातार आग्रह करने के बावजूद भी अनावेदकगण द्वारा पंजीयन कर आधिपत्य नहीं सौंपा गया है, उचित प्रतीत होता है। अर्थात् उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह माना जा सकता है कि अनावेदकगण से निवेदन करने के बावजूद भी अनावेदकगण ने फ्लैट का निर्माण कार्य पूर्ण कर पंजीयन करने उपरांत आवेदक को आधिपत्य प्रदान नहीं किया है। निष्कर्षत: वर्तमान सौदे के अपूर्ण होने के लिये अनावेदकगण उत्तरदायी प्रतीत होते हैं। अनावेदकगण ने अपने जवाब में प्रश्नाधीन इकरारनामा का उल्लेख करते हुये बयाना के वापसी योग्य नहीं होने का भी लेख किया है। इकरारनामा के अवलोकन से यह दर्शित होता है कि इकरारनामा की कंडिका- ( 2- अ) में बयाना वापस नहीं किये जाने का उल्लेख है और इकरारनामा में बयाना राशि रूपये 18,00,000/ उल्लेखित है। परन्तु सौदे के कुल प्रतिफल राशि की 60 प्रतिशत राशि को बयाना कैसे माना जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में इकरारनामा में बयाना नहीं लौटाये जाने का उल्लेख होने के कारण और सौदे की 60 प्रतिशत राशि को बयाना दर्शाने के कारण विवादित करार को एकपक्षीय करार माना जा सकता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न प्रकरणों में पारित आदेशों के एकपक्षीय करार को शून्य माने जाने के सिद्धांत का उल्लेख किया गया है। वर्तमान प्रकरण में विवादित इकरारनामा के एकपक्षीय होने के कारण करार को शून्य माना जा सकता है। रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में ऐसे एकपक्षीय सौदों के कारण पारदर्शिता की कमी होने तथा आबंटितियों का हित विपरीत रूप से प्रभावित होने के कारण सेक्टर के समुचित विनियमन और आबंटितियों के हितों के संरक्षण के उद्देश्य से भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 का प्रवर्तन तथा अधिनियम अंतर्गत प्राधिकरण का गठन हुआ है। चूँकि वर्तमान प्रकरण में भी प्रमोटर / अनावेदकगण द्वारा आबंटिती / आवेदक के साथ एकपक्षीय करार कर सौदे की 60 प्रतिशत राशि वर्ष 2015 में प्राप्त करने उपरांत भी आज दिनाँक तक फ्लैट को पूर्ण कर पंजीयन की कार्यवाही नहीं की गई है। अत: आवेदक द्वारा मांग किये जाने पर अनावेदकगण भुगतान की गई संपूर्ण राशि वापस करने हेतु उत्तरदायी है । यहाँ यह भी उल्लेखित किया जाना आवश्यक है कि प्रकरण की सुनवाई के दौरान उभय पक्षों ने आपसी सहमति से समझौता करने हेतु समय चाहने उपरांत इकरारनामा दिनाँक 19.07.2022 प्रस्तुत किया है। किन्तु इसके उपरांत आवेदक ने तर्क के दौरान यह बताया है कि अनावेदकगण ने इकरारनामा अनुसार राशि भुगतान हेतु कोई भी पोस्ट डेटेड चेक्स आवेदक को प्रदान नहीं किये हैं। ऐसी परिस्थिति में उक्त समझौता इकरारनामा को न्यायहित में स्वीकार नहीं किया जा सकता । निष्कर्षत: अनावेदकगण को आवेदक द्वारा भुगतान की गई राशि का मय ब्याज (अप्रैल, 2015 से) वापस करने हेतु निर्देशित किया जाना उचित प्रतीत होता है ।
भू-संपदा (विनियमन और विकास) नियम, 2017 के नियम 17 के द्वारा आबंटिती को देय ब्याज की दर, भारतीय स्टेट बैंक की ऋणदाता दर की अनुसार प्रमोटर उच्चतम मार्जिनल लागत प्लस दो प्रतिशत होगी। इसके अनुसार प्रश्नाधीन प्रकरण में अप्रैल, 2015 से 7 वर्ष 5 माह की विलंबित अवधि हेतु भारतीय स्टेट बैंक की दिनाँक 15.08.2022 से प्रभावशील दरों के अनुसार देय ब्याज की दर 7.80 प्रतिशत + 2 प्रतिशत = 9.80 प्रतिशत होगी। अर्थात् अधिनियम की धारा 18 व सहपठित नियम-17 के अनुसार आवेदक, उसके द्वारा भुगतान की गई कुल राशि रूपये 18,00,000/- के साथ उक्त दर से 7 वर्ष 5 माह की विलंबित अवधि हेतु ब्याज राशि रूपये 13,08,300 / - का हकदार है। इसके अतिरिक्त आवेदक ने प्रश्नाधीन प्रोजेक्ट के छ.ग. रेरा में पंजीकृत नहीं होने का भी लेख किया है। इस संबंध में प्रोजेक्ट से संबंधित प्रकरण की सुनवाई के दौरान प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन से यह दर्शित होता है कि प्रोजेक्ट भूमि का क्षेत्रफल 2230.51 वर्गमीटर है। अनावेदकगण ने प्रश्नाधीन प्रोजेक्ट का कार्य पूर्ण होने के संबंध में कोई कार्य पूर्णता / भवन पूर्णता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं किया है। इससे यह प्रतीत होता है कि अनावेदकगण ने ऑनगोईंग प्रोजेक्ट का पंजीयन छ.ग. रेरा में नहीं कराया है, जो अधिनियम की धारा-3 तथा उक्त प्रावधान अंतर्गत प्राधिकरण द्वारा जारी निर्देशों का उल्लंघन है। अत: उक्त संबंध में अनावेदकगण को पृथक से नोटिस जारी कर आवश्यक कार्यवाही करने हेतु रजिस्ट्रार, छ.ग. रेरा को निर्देशित किया जाता है। उपरोक्त को दृष्टिगत रखते हुये आवेदक व अन्य आबंटितियों के हितों के संरक्षण हेतु प्रश्नाधीन प्रोजेक्ट में क्रय-विक्रय को प्रतिबंधित किया जाना भी उचित प्रतीत होता है। उपरोक्त के अतिरिक्त आवेदक, प्राधिकरण के माध्यम से अन्य किसी अनुतोष प्राप्ति का हकदार नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर प्राधिकरण द्वारा आवेदक का आवेदन स्वीकार करते हुये अनावेदकगण के विरूद्ध निम्नानुसार आदेश पारित किया जाता है :
1. अनावेदकगण, दो माह के भीतर आवेदक द्वारा भुगतान की गई राशि रूपये 18,00,000/- वापस करना सुनिश्चित करे ।
2. अनावेदकगण, दो माह के भीतर ब्याज राशि रूपये 13,08,300 / - का भी भुगतान आवेदक को करना सुनिश्चित करे
3. उपरोक्तानुसार आदेशों का अनुपालन किये जाने तक प्रश्नाधीन प्रोजेक्ट में क्रय-विक्रय को प्रतिबंधित किया जाता है। रजिस्ट्रार, छ.ग. रेरा इस हेतु कलेक्टर, जिला-दुर्ग तथा जिला पंजीयक, जिला-दुर्ग (छ.ग.) को पृथक से पत्र प्रेषित करे ।
4. रजिस्ट्रार, छ.ग. रेरा, अनावेदकगण के विरूद्ध अधिनियम की धारा-3 अंतर्गत पृथक से नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करना सुनिश्चित करे ।