डिजिटल आंखों के तनाव पर किया जागरूक: नेत्र रोड विशेषज्ञों ने बताया खतरे, बचाव और बच्चों के लिए जरूरी गाइडलाइन

डिजिटल आंखों के तनाव पर किया जागरूक: नेत्र रोड विशेषज्ञों ने बताया खतरे, बचाव और बच्चों के लिए जरूरी गाइडलाइन

भिलाई। छत्तीसगढ़ राज्य नेत्र रोग सोसायटी के बैनर तले जिला दुर्ग संभागीय नेत्र रोग सोसायटी डीडीओएस द्वारा डिजिटल आंखों के तनाव पर जागरूकता के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें जिसमें दुर्ग के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञों ने बच्चों, अभिभावकों और युवाओं को डिजिटल स्क्रीन से होने वाली समस्याओं के बारे में बताया। डॉक्टरों ने कहा कि कंप्यूटर और मोबाइल का लम्बे समय तक उपयोग आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है और इसकी अनदेखी आगे गंभीर बीमारी का कारण भी बन सकती है।

इस दौरान डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव डायरेक्टर श्री नेत्रालय रिटायर्ड जॉइंट डायरेक्टर सीजी हेल्थ सर्विसेज़ प्रेसिडेंट डीडीओएस, डॉ. रुचिर भटनागर एचओडी जवाहर लाल नेहरू हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर सेक्टर-9 और वाइस प्रेसिडेंट डीडीओएस, डॉ. अरशद सिद्दीकी, सिद्दीकी आई हॉस्पिटल दुर्ग और प्रेसिडेंट इलेक्ट सीएसओएस, डॉ. बसंत वर्मा वर्मा आई हॉस्पिटल और एग्जीक्यूटिव मेंबर डीडीओएस, डॉ. लिपि चक्रवर्ती प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ़ ऑप्थल्मोलॉजी सीएम मेडिकल कॉलेज, डॉ. शशांक सेन डायरेक्टर साई नेत्रालय और जनरल सेक्रेटरी डीडीओएस उपस्थित थे। सभी विशेषज्ञों ने अलग-अलग पहलुओं पर अपनी बातें रखीं।

डॉ. रुचिर भटनागर ने डिजिटल आई स्ट्रेन पर बताया कि लगातार स्क्रीन देखने से आंखों की मांसपेशियों पर तनाव पड़ता है। इससे बचने के लिए 20-20-20 नियम सबसे उपयोगी माना गया। यानी हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर किसी वस्तु को देखने की आदत डालें। उन्होंने यह भी बताया कि स्क्रीन पर काम करते समय हम सामान्य से काफी कम पलकें झपकाते हैं, जिससे आंखें सूख जाती हैं। इसलिए ब्रेक में जानबूझकर पलकें झपकाना जरूरी है। उन्होंने बच्चों और टीनएजर्स के लिए दिशा-निर्देश भी दिए। उनका कहना है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को व्यक्तिगत मोबाइल नहीं देना चाहिए। टीवी एक घंटे तक सीमित हो। सोशल मीडिया का उपयोग 16 साल के बाद ही करना बेहतर है। वहीं शिक्षकों से कहा गया कि प्रोजेक्ट या होमवर्क डिजिटल माध्यम से देने से बचें, क्योंकि इससे बच्चों में समय से पहले मोबाइल की आदत पड़ जाती है। उन्हाेंने कहा कि कोरोना कॉल में लॉकडाउन के दौरान सभी बच्चों को मोबाइल पर ऑनलाईन क्लासेस करवाया गया। इससे बच्चों को मोबाइल की लत गई है।

दुर्ग संभागीय नेत्र रोग सोसायटी के जनरल सेक्रेटरी डॉ. शशांक सेन ने बताया कि घर के बाहर समय बिताना भी आंखों की सेहत के लिए जरूरी है। रोजाना लगभग एक घंटे प्राकृतिक रोशनी में रहने से मांशपेशियाें का खतरा कम होता है। धूप में जाते समय यूव्ही सुरक्षित सनग्लास पहने और टोपी का उपयोग करें। उन्होंने सही भोजन पर जोर देते हुए कहा कि ल्यूटिन, जेक्सैन्थिन, ओमेगा-3, विटामिन सी और ई आंखों के लिए बेहद जरूरी हैं। इन पोषक तत्वों के लिए हरी सब्जियां, अंडा, अखरोट, अलसी के बीज, मछली, खट्टे फल और बादाम को आहार में शामिल करना चाहिए। कॉन्टैक्ट लेंस की सफाई, मेकअप हटाने, आंखें रगड़ने से बचने और खेल के दौरान सुरक्षात्मक चश्मे पहनने की सलाह भी दी गई। साल में एक बार आंखों की पूरी जांच कराना जरूरी है, ताकि शुरुआती अवस्था में बीमारी पकड़ी जा सके। अगर हम स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखें, सही पोस्चर अपनाएं, बाहर समय बिताएं और नियमित जांच कराएं, तो डिजिटल दौर में भी आंखों को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।

डॉक्टर की सलाह

1. किसी भी लक्षण को नजर अंदाज करें। लगातार सिरदर्द, आंखों में लाली, बहुत ज़्यादा पानी आना, या अचानक धुंधला दिखना ये सब चेतावनी के संकेत हैं जिन पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

2. खेलों में सुरक्षात्मक आईवियरः क्रिकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल या अन्य तेज गति वाले खेलों में आंखों की चोट का खतरा होता है। ऐसे खेलों में हमेशा उचित फिटिंग वाले सुरक्षात्मक चश्मे का उपयोग करें।

3. पालकों के लिए निर्देश: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को मोबाइल तथा लेपटॉप देखने ना दें। 16 वर्ष तक के बच्चों को केवल 2-3 घंटे ही स्क्रीन एक्सपोज़र हो। सामूहिक तौर पर टीवी 4 वर्ष की आयु से 1 घंटा देखा जा सकेगा। प्रतिवर्ष आधा घंटा समय बढ़ाते जाये। सोशल मीडिया 16 वर्ष के पहले देखने की अनुमति न दे।

4. शिक्षकों के लिए आवश्यक सुझाव: किसी भी विद्यार्थी को प्रोजेक्ट वर्क या होमवर्क मोबाइल पर अथवा डिजिटली ना देखने दें। ऐसे में किशोरावस्था में ही मोबाइल चलाने लत लग सकती है।

5. प्रत्येक स्कूली छात्र- छात्राओं को क्लासरूम में रोटेशन से अग्रिम पंक्ति से पीछे की पंक्ति में बिठाया जाना अनिवार्य है, ताकि निकट दृष्टि दोष रोग का शीघ्र निदान स्वयं शिक्षक ही क्लासरूम में कर सकते है। फिर नेत्रविशेषज्ञ द्वारा अभिभावक की उपस्थिति में नेत्र परीक्षण कर चश्मे प्रदान किये जाते है। इन दिशानिर्देशों का पालन करके टीनएजर्स अपनी आंखों को स्वस्थ, सुरक्षित और उनकी दृष्टि की शक्ति को आने वाले वर्षों तक बरकरार रख सकते हैं।