पति-पत्नी में मामूली बातों पर झगड़ा और चिड़चिड़ाहट तलाक का आधार नहीं
फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की याचिका खारिज
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि पति-पत्नी में मामूली बातों पर झगड़ा, विवाद और चिड़चिड़ाहट विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। व्यवहार में क्रूरता और एक- दूसरे के साथ रह पाना असंभव होने की स्थिति साबित करना जरूरी है। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की याचिका खारिज कर दी है।
राजनांदगांव में रहने वाले मनीष राय और कांकेर में रहने वाली 20 वर्षीय युवती ने 28 दिसंबर 2015 को प्रेम विवाह किया था। शादी के कुछ महीनों तक उनके बीच संबंध ठीक रहा, इसके बाद उनमें विवाद होने लगा। पति ने 4 दिसंबर 2017 को राजनांदगांव के फैमिली कोर्ट में केस प्रस्तुत किया। इसमें बताया कि शादी के कुछ महीनों के बाद पत्नी विवाद करने लगी।
दोस्तों के सामने यह कहकर अपमानित करती थी कि कहां इस भिखारी के चंगुल में फंस गई हूं, जो उसकी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सकता। दंपती में लगातार विवाद से परेशान होकर मकान मालिक ने भी घर खाली करवा लिया था। इसके बाद वे दोनों पति के मां के साथ रहने लगे, यहां भी पत्नी कुछ दिनों तक ठीक रही, बाद में विवाद करने लगी।
मां से भी विवाद करती थी। इसके बाद वह अपने नौकरी वाली जगह में रहने लगी। पत्नी खाना भी नहीं बनाती थी। पति ने कोर्ट में कहा कि लगातार शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना की वजह से उनका साथ रहना मुश्किल हो गया है। यह भी बताया कि शादी के बाद वे करीब 10 महीने ही साथ रहे हैं। पत्नी अपने मायके में रहने लगी थी।
फैमिली कोर्ट के नोटिस के जवाब में पत्नी ने सभी आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि प्रेम विवाह के बाद करीब 5 माह वे किराये के मकान में रहे, इसके बाद पति अपने घर ले गया, लेकिन सास को शादी पसंद नहीं थी। वह हमेशा कहती थी कि बदचलन ने उसके बेटे के साथ शादी कर ली है। वह अक्टूबर 2017 में सास से पूछकर मायके गई थी, लेकिन इसके बाद पति उसे वापस लेने नहीं आए। वर्ष 2018 में कोर्ट का नोटिस मिलने पर वह चौंक गई। पत्नी ने कहा कि वह अभी भी पति के साथ ही रहना चाहती है।
फैमिली कोर्ट ने पति द्वारा क्रूरता साबित नहीं कर पाने के आधार पर विवाह विच्छेद के लिए प्रस्तुत मामला खारिज कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में मामला प्रस्तुत किया था। हाईकोर्ट ने पति के आरोपों से पत्नी द्वारा क्रूरता साबित नहीं कर पाने और प्रावधानों के अनुसार विवाह के बाद दो साल की अवधि पूरी किए बगैर मामला प्रस्तुत करने के आधार पर पति की याचिका खारिज कर दी है।