विलुप्त होने की कगार पर चंदखुरी का प्राचीन शिव मंदिर
पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित किए जाने के बाद भी कोई पहल नहीं
रायपुर(सुवांकर रॉय)। हसौद से 12 किलोमीटर दूर तथा माता कौशिल्या की जन्म भूमि ग्राम चंदखुरी गांव में प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। इस प्राचीन शिव मंदिर को छ: माशी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर परिसर में कुछ खण्डि प्रतिमा को रखा गया है। पुरातत्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित घोषित किया गया है लेकिन 120 साल पुराना यह मंदिर आज भी अधूरा है तथा देखरेख की कमी के कारण आज यह प्राय विलुप्त होने के कगार पर खड़ी है। हमारे संवाददाता पिन्टू नन्दी ने जब ग्रामीणों से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि इसे छत्तीसगढ़ शासन द्वारा संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में रखा गया है लेकिन संधारण कार्य व देख रेख की अभाव में यह विलुप्त होने की कगार पर है।
रायपुर शहर के केवल 35 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद चंदखूरी गांव पड़ता है। इस गांव के बीच में प्राचीन शिव मंदिर है। इसे पुरातत्व विभाग ने खोज कर निकला है। आसपास की खुदाई के बाद ढेर सारी खंडित मूर्तियां भी पुरातत्व विभाग को मिली है। मंदिर को सोमवंशी राजाओं ने निर्माण करवाया है। बताया जाता है कि इस मंदिर को केवल रात के अंधेरे में ही बनाया गया है। दिन होने पर निर्माण का काम रोक दिया गया जो आजतक अधूरा है। यहां दूर-दूर श्रद्धालुगण दर्शन के लिए पहुंचे हैं।
इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण 10वीं-11वीं शती ईस्वी में हुआ था किंतु इस मंदिर का अलंकृत द्वार तोरण किसी दूसरे विनष्ट हुए सोमवंशी मंदिर (काल 8वीं सती ईस्वी) का है। इसके द्वार शाखाओं पर गंगा एवं यमुना नदी देवियों का अंकन है। सिरदल पर लगा ललाट बिंब में गजलक्ष्मी बैठी हुई है जिसकी एक और बाली-सुग्रीव की मल्ल युद्ध एवं मृत बाली का सिर गोद पर रखकर विलाप करती हुई तारा का करुण दृश्य प्रदर्शित है। नागर शैली में निर्मित यह पंचरथ मंदिर है। गांव के तालाब के पास एक मूर्ति मिली थी। ग्रामीणों ने बताया कि कई सारी मूर्तियां इसी मंदिर के आस पास खुदाई से मिली है। यहां एक सुरंग भी जमीन के अंदर जो तीनों तालाब में जाता है। एक रानी तालाब है जहां रानी-राजा नहाते थे। उसी तालाब के पास एक मूर्ति मिली है। ये सभी मूर्तियां खंडित है जो बड़े-बड़े पत्थर को तोड़कर बनाया गया है।