सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करें वीरभद्र महाराज-संत श्री माता जी, देखें VIDEO

तीर्थराज देवी निकुंभला राजलक्ष्मी मंदिर जय शक्ति आश्रम ग्राम निकुम में वीरभद्र महायज्ञ का समापन

दुर्ग। सैकड़ों मंत्र जाप और भक्तिमय वातावरण में विगत 30 मार्च से तीर्थराज देवी निकुंभला राजलक्ष्मी मंदिर जय शक्ति आश्रम निकुम जिला दुर्ग में प्रारंभ हुए वीरभद्र महायज्ञ का समापन आज 6 अप्रैल को हुआ। छत्तीसगढ़ के दूर-दूर क्षेत्रों से श्रद्धालुगण इस वृहद महायज्ञ में शामिल होने निकुम पहुंचे थे। 8 दिन चले इस आयोजन में संत श्री माता जी द्वारा वीरभद्र महाराज के विशाल स्वरूप का वर्णन किया गया। संत श्री माता जी ने महायज्ञ में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की सुख समृद्धि तथा कष्टों से निवारण हेतु सैकड़ों मंत्रों का जाप संत श्री माता जी के निर्देशन में भक्तों द्वारा सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक सैकड़ों मंत्र जाप के साथ हवन कुंड में पूर्णाहुति दी गई। सुबह 11 बजे से दोपहर एक बजे तक सैकड़ों मंत्र जाप के साथ हवन कुंड में पूर्णाहुति दी गई। हवन सामग्री को मंत्रों के साथ अग्नि में अर्पित करते हुए हर आहुति के बाद "स्वाहा" शब्द का उच्चारण किया गया जो अग्नि देव को भोग लगाने का प्रतीक है। संत श्री माता जी ने यह भी बताया कि सभी देवी देवताओं की पूजा तो हर कोई करता है लेकिन बहुत ही कम लोग है जो वीरभद्र महाराज का पूजा करते है। वीरभद्र महाराज के क्रोध से सभी डरते हैं, लेकिन सच्चे मन से अगर उन्हें पूजा जाए तो वे सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

कौन है वीरभद्र महाराज

इतिहास से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने एक भव्य विशाल यग्य का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी - देवता आमंत्रित थे, किन्तु भगवान् शिव को अपना घोर शत्रु मानने वाले राजा दक्ष ने अपनी बेटी देवी सती तथा जमाता भगवान शिव को यग्य का आमंत्रण नहीं दिया और भगवान शिव के मना करने के बाद भी माता सती उस यज्ञ में चली गई क्योंकि माता सती का मानना था की वह उन्हीं का घर है तो आमंत्रण कैसा यग्य में पहुंचकर माता सती ने सभी देवी देवताओं को देखा किन्तु उनके पति भगवान् शिव का वहां कोई स्थान नहीं थामां सती ने राजा दक्ष से जब इसका कारण पूछा तो राजा दक्ष ने भगवान शिव के लिए कई अपशब्दो का प्रयोग किया जो देवी सती सहन न कर पाई तथा उसी यज्ञ कुंड की अग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे दी. जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ कर उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया तथा उस जटा के पूर्वभाग से महादेव के रौद्र स्वरुप महाभयानक वीरभद्र प्रगट हुए भगवान शिव के आदेशानुसार उनके वीरभद्र अवतार ने राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया जिनको सबकी स्तुति पर भगवान् शिव ने बकरे का सिर लगाकर पुनः जीवित कर दिया फिर भी वीरभद्र का क्रोध शांत न हुआ इस तरह क्रोध से ओत प्रोत वीरभद्र जब पहुंचे, तो वहां भगवान शिव ने उन्हें गले लगा कर उनका क्रोध शांत किया। इससे वीरभद्र महादेव में समा गए तथा शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए

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