अंगदान का नियम सालों बाद भी नहीं बना, हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव व केंद्र से जवाब मांगा

छत्तीसगढ़ में नहीं बना ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट

अंगदान का नियम सालों बाद भी नहीं बना, हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव व केंद्र से जवाब मांगा

बिलासपुर। केंद्र सरकार ने देश में अंगदान के लिए ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट (होटा) 1994 लागू किया है। यह कानून अंग प्रत्यारोपण के लिए है। एक्ट में 2011 में संशोधन हुआ। संशोधित एक्ट को छत्तीसगढ़ ने भी एडॉप्ट कर लिया, लेकिन यहां नियम नहीं बनाए, इस कारण अंगदान की आधी-अधूरी प्रक्रिया निभाई जा रही है। जिन जरूरतमंदों को महत्वपूर्ण अंगों की जरूरत है उन्हें वह अंग नहीं मिल पा रहा है। इसे लेकर हाईकोर्ट में पेश की गई जनहित याचिका पर कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव, केंद्र सरकार सहित अन्य से जवाब तलब किया है। आभा सक्सेना ने अधिवक्ता अमन सक्सेना के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका प्रस्तुत कर बताया कि प्रदेश में 250 से अधिक ऐसे जरूरतमंद हैं जिन्हें अंगदान की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में कोई कानून और सुविधा नहीं होने के कारण वे दूसरे राज्यों के भरोसे हैं। वहां उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता है। वहीं जब उनकी बारी आती है तो उनके पास तैयारी के लिए बहुत कम समय होता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया कानूनन होनी चाहिए। यह भी बताया कि यहां लाइव ऑर्गन डोनर की व्यवस्था है, परिवार के सदस्य अंगदान कर सकते हैं।
कैडवरी डोनर यानी डॉक्टरों की टीम द्वारा ब्रेन डेड घोषित किया जाता है उनके परिजनों की सहमति से यहां अंग प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यहां ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट के लिए नियम बनाया ही नहीं गया है। इतना ही नहीं राज्य में ट्रांसप्लांट को कोऑर्डिनेट करने वाले स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (सोटो) का गठन तो किया गया है लेकिन न बजट दिया और न ही कार्यालय है। इसके कारण ब्रेन डेड लोगों की जानकारी ही नहीं ली जा रही, न ही ऐसे अस्पतालों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है, जहां अंग प्रत्यारोपण किया जा सकता है। सोटो का गठन बस दिखावटी बन कर रह गया है। जबकि प्रदेश में 250 ऐसे लोग हैं जिन्हें अंगों की जरूरत है। वे ट्रांसप्लांट के लिए इंतजार कर रहे हैं। ये जरूरतमंद वे हैं जिन्हें किडनी, हार्ट, लीवर, लंग्स, पैंक्रियाज, कॉर्निया और स्मॉल बाउल (छोटी आंत) की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से मांग की है कि राज्य में बी कैडवरी ट्रांसप्लांट की सुविधा जरूरतमंदों को मिले। कोर्ट से इसके लिए राज्य शासन को दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है, जिससे लाइव सेविंग प्रोसेस शुरू पाए। 
मामले को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा कि एक्ट में संशोधन हुए और सरकार द्वारा इसे एडॉप्ट किए हुए 11 साल हो गए हैं अब तक नियम क्यों नहीं बना? इस पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि इसके लिए वे इंस्ट्रक्शन लेना चाहते हैं। हाईकोर्ट ने मामले को 17 अगस्त को सुनवाई के लिए रखते हुए स्वास्थ्य विभाग के सचिव, सोटो, केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।


1 कैडवर 8 जिंदगियां बचाता है
व्यक्ति को डॉक्टरों द्वारा ब्रेन डेड यानी मस्तिष्क मृत घोषित किए जाने के बाद उसके परिजनों की सहमति पर अंगदान की प्रक्रिया की जाती है। ऐसे दानदाता को कैडवर कहा जाता है। 1 कैडवर 8 जिंदगी बचाता है। उसके किडनी, हार्ट, लीवर, लंग्स, पैंक्रियाज, कॉर्निया और स्मॉल बाउल (छोटी आंत) को दान किया जा सकता है।