100 से भी अधिक वारदातों को अंजाम देने वाला 10 लाख इनामी नक्सली कमांडर गिरफ्तार
रांची। झारखंड के 10 लाख के इनामी माओवादी नक्सली कमांडर अरविंद भुइयां को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसे झारखंड-बिहार की सीमा पर गया में दबोचा गया है। माओवादियों के टॉप कमांडर अरविंद भुइयां उर्फ मुखिया की निशानदेही पर पुलिस ने एके-47 समेत कई आधुनिक हथियार बरामद किए हैं। अरविंद भुइयां गया के सलैया थाना क्षेत्र के विराज गांव का रहने वाला है। उसने झारखंड और बिहार दोनों राज्यों में 100 से भी ज्यादा नक्सली वारदातों को अंजाम दिया है। उसकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने झारखंड-बिहार सीमा पर बड़ा सर्च अभियान शुरू किया है। अरविंद भुइयां उर्फ मुखिया के खिलाफ झारखंड के पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, हजारीबाग और बिहार के गया और औरंगाबाद के कई थानों में संगीन मामले दर्ज हैं। उस पर सुरक्षा बलों के 30 से भी ज्यादा जवानों की हत्या का आरोप है। 2010-11 में पलामू के मनातू थाना क्षेत्र में तत्कालीन एसपी पर हमले में भी वह शामिल था। इस घटना में पलामू एसपी बाल-बाल बच गए थे। इसमें दो जवान शहीद हुए थे। अरविंद इन दिनों माओवादी संगठन के लिए पलामू, चतरा और गया सीमा की कमान संभाल रहा था।
पुलिस को कैसे मिली सफलता
धीरे- धीरे इलाके में माओवादियों की गिरती साख से अरविंद की लोकप्रियता भी कम होती गयी. पुलिस अपनी दबिश बढाती गयी. पुलिस का सूचना तंत्र ठीक काम करने लगा. माओवादिओं के खिलाफ पुलिस लगातार ऑपरेशन करती रही जिससे संगठन कमजोर होता गया. वर्ष 2022 से पुलिस लगातार मुखिया जी के पीछे लग गयी. पलामू-गया-चतरा का जो इलाका एक समय मुखिया जी का सबसे सेफ जोन था, वहीं वह बुरी तरह से घिर गया. पिछले एक साल में उसके दस्ते पर कभी बिहार पुलिस, तो कभी पलामू पुलिस हमला करता रहा. पलामू- चतरा सीमा पर पुलिस के साथ अप्रैल में हुए मुठभेड़ में उसके पांच साथी मारे गए, पर वह बच निकला. मुखिया जी बच तो गया, पर वह काफी कमजोर हो गया था. उस घटना के बाद से पुलिस लगातार नजर बनाई हुई थी. आखिरकार उसे बिहार के सुरक्षाबलों ने बिहार से सटे मनातू के सलैया जंगल के पास से धर दबोचा.
कौन है अरविंद भुइयां उर्फ मुखिया जी
कम उम्र से ही माओवादी दस्ते में सक्रिय अरविंद भुइयां मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. गया जिला के विराज गांव का रहने वाला अरविंद भुइयां शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि और तेज तर्रार था. माओवादियों से संपर्क में आने के बाद वह उस ओर आकर्षित होता गया. संगठन में शामिल होने के कुछ समय बाद ही वह अपने कार्यों से बड़े माओवादी लीडरों को प्रभावित करने में सफल रहा. जल्द ही वह संगठन में अपना प्रभाव विस्तार किया और कई पदों पर रहा. शुरू के दिनों में वह अपने प्रभाव वाले इलाके में अपना रॉबिनहुड वाली इमेज के कारण लोकप्रिय भी रहा. यही कारण था कि उसे ग्रामीणों का भी साथ मिलता था और पुलिस उसके खिलाफ हर मोर्चे पर विफल हो जाती थी.