राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: श्री शंकराचार्य महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने किए द्वारा बुनकर संघ दुर्ग का शैक्षिक भ्रमण
भिलाई। श्री शंकराचार्य महाविद्यालय जुनवानी भिलाई के कला संकाय के विद्यार्थियों द्वारा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के उपलक्ष्य में बुनकर संघ दुर्ग का शैक्षिक भ्रमण किया गया। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 7 अगस्त 2023 को मनाया जा रहा है। यह वह दिन है जब देश हथकरघा बुनाई की अपनी समृद्ध परंपरा का सम्मान करता है और देश की सांस्कृतिक विरासत में बुनकरों के योगदान को मान्यता देता है। यह दिन 1905 में शुरू किए गए स्वदेशी आंदोलन की याद में भी मनाया जाता है। हथकरघा उद्योग ने देश भर के लाखों बुनकरों और कारीगरों को आजीविका प्रदान करने में भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अर्चना झा ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस दिन हथकरघा उत्पादों की सुंदरता दिखाने और लोगों को उन्हें खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने विभिन्न कार्यक्रम और प्रदर्शनियां आयोजित की जाती। हथकरघा से बने कपड़ों से महाविद्यालय द्वारा राखी और आभूषण बनाना सिखलाया जाता हैं। इस महत्वपूर्ण दिन के महत्व और भारत की स्वदेशी संस्कृति को संरक्षित करने में हथकरघा बुनकरों की भूमिका पर विचार करना महत्वपूर्ण है। औद्योगीकरण और बड़े पैमाने पर उत्पादन के बढऩे से कई हथकरघा बुनकरों की आजीविका खतरे में पड़ गई है और कई लोग अपना शिल्प छोड़कर अन्य काम खोजने के लिए मजबूर हो गए हैं। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2023 इस मूल्यवान परंपरा के संरक्षण की वकालत करने और इसे जीवित रखने वाले बुनकरों का समर्थन करने का एक अवसर है।
महाविद्यालय के एकाडमिक डीन डॉ. जे. दुर्गा प्रसाद राव ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप हथकरघा उत्पादों को खरीदकर उन्हें सोशल मीडिया पर प्रचारित करके और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करके हथकरघा उद्योग का समर्थन कर सकते हैं। भारत में कुछ लोकप्रिय हथकरघा उत्पादों में साड़ी, शॉल, धोती, लुंगी और गलीचे शामिल हैं। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पहली बार 1905 के स्वदेशी आंदोलन को चिह्नित करने के लिए 7 अगस्त 2015 को मनाया गया था। बुनकर संघ के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत में हथकरघा उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। भारत दुनिया में सबसे अधिक संख्या में हथकरघा बुनकरों का घर है और इस क्षेत्र में 4.3 मिलियन से अधिक लोग लगे हुए हैं। भारत में सभी बुनकरों में से 70 से अधिक महिलाएँ हैं। भारत में हथकरघा उद्योग में पीढिय़ों से चली आ रही कई बुनाई तकनीकों और डिजाइनों का इतिहास है। हथकरघा उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ होते हैं क्योंकि वे प्राकृतिक रेशों और रंगों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
भारत में हथकरघा उद्योग अत्यधिक विकेंद्रीकृत है, बुनकर पूरे देश में छोटे समूहों में काम करते हैं। इसके परिणामस्वरूप हथकरघा उत्पादों की एक विविध श्रृंखला सामने आई है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी शैली और डिजाइन है। हथकरघा एक भारतीय विरासत थी। 'टिकाउ फैशन के लिए हथकरघर थीम में हथकरघा की समृद्ध विरासत और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसके महत्व पर प्रकाश डाला गया। भारत सरकार हथकरघा श्रमिकों सहित लघु उद्योगों को समर्थन देने के लिए कई योजनाएं शुरू कर रही है। महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना हथकरघा बुनकरों को दुर्घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में बीमा कवरेज प्रदान करती है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) छोटे व्यवसायों को रुपये तक के ऋण के रूप में 10 लाख की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसका उद्देश्य इन व्यवसायों की वृद्धि और विकास का समर्थन करना है । राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) का उद्देश्य हथकरघा बुनकरों को उनके कौशल के विकास, उनकी प्रौद्योगिकी को उन्नत करने और उनके उत्पादों के विपणन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। कौशल भारत का उद्देश्य हथकरघा और लघु उद्योग क्षेत्र सहित देश के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है। श्री शंकराचार्य महाविद्यालय जुनवानी भिलाई के कला संकाय के 12 विद्यार्थियों मो. फयाज, वैदिता यादव, लोकेश भेजक, ईशा कुमारी गुप्ता, कृष्ण प्रताप, परविंदर कौर, तनुश्री, हिना नाग, प्राची हिरवानी, वैदिशा मिश्रा, श्रेया कामले आदि एवं कला संकाय की विभागाध्यक्ष डॉ. जयश्री वाकणकर एंव डॉ. पूर्णिमा तिवारी के नेतृत्व में बुनकर संघ दुर्ग का शैक्षिक भ्रमण किया गया।